नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष
'मैया! मैया! मेरा सखा सकुशल है।' मधुमंगल ने मैया यशोदा को हिलाना-पुकारना प्रारम्भ किया। 'माँ! मेरा सखा आ रहा है।' रोहिणीजी को इसने सचेत कर दिया। 'भाभी! यह लाल आ गया तुम्हारा।' सुनन्दा ने यशोदाजी को दोनों हाथों का बल लगाकर उठा दिया। 'कहाँ है? कहाँ गयी राक्षसी?' यशोदा ने अर्धमूर्च्छितावस्था में ही पुकारा। 'राक्षसी मरी पड़ी है।' सुनन्दा ने झकझोरा- 'नेत्र खोलो! यह रहा अपना नीलमणि!' 'सचमुच!' यशोदाजी उठीं भी तो फटे-फटे नेत्रों से देखने लगीं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सुकुमार सुकुशल लौट आया है। 'तनिक रुको?' जेठानी तुंगी ने कहा- 'यह राक्षसी की गोद से आया है। इसकी रक्षा कर लेने दो।' गोपियों के वात्सल्य की महिमा अपार है। जो अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्डों का अधीश्वर, सबका शाश्वत संरक्षक है, उसकी ये रक्षा कर रही हैं। यह गोपाल बनकर आया है तो गौयें रक्षा करें इसकी। गोपुच्छ घुमाई शिशु के सर्वांग पर और फिर गोमूत्र से स्नान करा दिया। गायों के खुरों से खुन्दित धूलि उठाकर पूरे शरीर में मल दी। गोमूत्र स्नात, सर्वांग गोधूलि की कीच लगी इन नन्दनन्दन की यह छटा- अब तो ये भगवती पूर्णमासी आ गयी हैं। इन्होंने अब विधि-विधान सम्हाल लिया है| इन्होंने कहा है- 'तुम सबने उस राक्षसी के शव का स्पर्श किया है। पहिले अपने कर-पद-प्रक्षालन करो और आचमन करके स्वयं अंग-न्यास तथा कर-न्यास करो।' गोपियों को आज्ञापालन बहुत अच्छा आता है। हमें तो हँसी आ रही है। इनकी- इन सर्वरक्षक की रक्षा की जा रही है। इनके अंगों में भगवन्नामों का न्यास हो रहा है। इनकी रक्षा- इनके नाम ही तो हैं जो आपत्ति में पड़े आर्तप्राणी की रक्षा करते हैं। तब ये नाम इनकी भी रक्षा करें।' 'अब तुम इसे लो!' भगवती पूर्णमासी ने अब मैया के अंक में दिया है उनका शिशु। |
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