नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
57. सुबल-दधि-दान
'तुझे क्या है, तू तो पूरे दिन अपने सखा के साथ रहता है। वह तुझे कन्धे पर हाथ रखे चिपकाये घूमता है। तुझे हम सबकी क्यों चिन्ता होने लगी। हम उसका मुख देखने को तरसती रहती हैं और......ललिता तो रोने ही लगी- 'तुम सबों को पता नहीं बछडे़ चराने की क्यों सूझ गयी थी। अब तो तू भी उसके साथ गायें चरायेगा। दिन भर वन में खेलेगा, कूदेगा, ऊधम करेगा! एक दिन घर बैठकर देख तो पता लगे कि हमारी क्या दशा है! आज तूने क्यों नहीं भोजन किया? तू क्यों सबेरे से मुँह बनाये है? तू क्यों बार-बार द्वार की ओर भागता है? अपनी तो सोचता नहीं और बहिन की पूँछता है? हम तो पनघट पर तनिक मिल लेती थीं; उससे भी गयीं।' सचमुच मैंने यह तो कभी नहीं सोचा मैं कन्हाई के बिना रात में घर कैसे रहता हूँ, मैं ही जानता हूँ। आज मेरी वर्षगाँठ है, वन में जाने को नहीं मिला। बाबा और मैया के कितना मना करने पर भी भैया श्रीदाम चला गया गायें लेकर। उसका जाना ही उचित था। मैं तो घर रह ही गया इस वर्षगाँठ के बवाल में, भैया भी क्यों व्यर्थ मेरे मोहन के समीप रहने से वञ्चित रहता। मैंने ही उसे कह दिया कि वह अवश्य चला गया। आज कन्हाई सबेरे ही मिलकर चला गया मेरा हृदय छटपटा रहा है। दिन पता नहीं कितना बड़ा हो गया है। पता नहीं कब सन्ध्या होगी और श्यामसुन्दर लौटेगा। वर्षगाँठ में क्या-क्या हुआ, मुझे कम ही पता है। मैं तो यही सोचता रह गया कि सखा वन में कहाँ होंगे, क्या करते होंगे। आज अवश्य कनूँ उज्ज्वल या भद्र के कन्धे पर अपनी वाम भुजा रखेगा। आज क्या-क्या करेगा वह? अवश्य आज वह उदास रहेगा। सदा के समान उल्लसित नहीं रहेगा। अपने सुबल को बार-बार स्मरण करेगा। वह भी मेरे बिना कहाँ रह पाता है। किसी दिन तनिक देर हो जाय, वन में तनिक दूर किसी कुञ्ज में हो जाऊँ तो पुकारने लगता है, उलाहना देता है, ढूँढ़ने चल देता है- 'तू कहाँ चला गया था? अब तक कहाँ था? क्या करने लगा था?' आज थक भी जायगा तो किसके कन्धे पर भुजा रखकर विश्राम करेगा? किसके उरु को उपधान बनाकर सोयेगा? कितना तो संकोची है। किसी से कहेगा भी नहीं कि थक गया है! बहुत बुरी है वर्षगाँठ! मैं कहूँगा कल उससे कि इस असुरी को भी मार दे। यह आती है तो मुझे उसके साथ वन में जाने को नहीं मिलता। वही क्यों आज शीघ्र नहीं लौट आता? इतनी देर तो हो गयी। गायों का पेट कब का चरकर भर गया होगा। कुछ पहिले आज आ जाय तो क्या उसे बाबा कुछ कहने वाले हैं? मैया तो प्रतिदिन कहती है कि हम सब वन से शीघ्र आ जाया करें। |
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