नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
34. उर्वशी-ऊखल-बन्धन
महालक्ष्मी-पूजन के अनन्तर मर्त्यलोक के मानव महेन्द्र का यजन करते हैं। इस अवसर पर सुरपति को धरा के- विशेषत: भारत वर्ष के नगरों, ग्रामों, ब्रजों में चलने वाले श्रौत इन्द्रयाग को स्वीकार करना पड़ता है। वेदज्ञ ब्राह्मणों के श्रद्धा-सहित सविधि आवाहन की उपेक्षा सुरेन्द्र के लिए भी अपराध है और वे जानते हैं कि भारतीय धरा का कोई ऋषिकुमार भी क्रुद्ध हो जाय तो उसका शाप शतऋतु को तत्काल पद-भ्रष्ट कर सकता है। अत: परम विलासी विडौजा भी ऐसा प्रसाद तो कभी भूलकर भी नहीं करेंगे। वे सहस्त्राक्ष जब मर्त्यलोक की श्रद्धा स्वीकार करने में व्यस्त होते हैं, हम अप्सरा-वृन्द को अवकाश मिल जाता है। मैं पितृपदों का प्रत्यक्ष करने बदरिकाश्रम भी जा सकती थी; किंतु वहाँ वे उस रूप में तपस्वी हैं। पुत्री को अपने आश्रम में पाकर वे प्रसन्न नहीं होंगे। अत: उनके पद-वन्दन का सौभाग्य वहाँ मुझे प्रापत नहीं है। अब गोकुल में इन लीलामय से एकत्मता कर ली है उन्होंने, तो यहाँ मैं उनके दर्शन कर सकती हूँ। इसमें भी एक बाधा है। अभी ये पुरुषोत्तम शैशव का नाट्य कर रहे हैं। फलत: मुझे छिपकर ही इनका दर्शन करना है। सुरपति को सुरों के साथ इन दिनों बहुत कम स्थानों से आहुतियाँ मिलती हैं। कंस और उसके अनुचरों ने यज्ञ-याग के विध्वंस का व्रत ले ही रखा है। वाणासुर, जरासन्ध जैस नैष्ठिक माहेश्वर भी सुरों को नहीं पूजते-पूछते। श्रुति सम्मत सम्यक विधि से सुरों का सत्कार ब्रज में विशेष रूप में होता है। ऋषि-मुनियों के बड़े समूह ने यहीं शरण ले रखी है। अत: सुरपति सुरों के साथ प्राय: इस अवसर पर प्रधान रूप से यहीं पधारते हैं। महेन्द्र यज्ञ में भाग लेे आये हैं अमरों के साथ। वे प्रत्यक्ष आहुति ग्रहण करें या अदृश्य रहकर, हम अप्सराओं का तो यज्ञ-स्थल में कोई काम नहीं है। हमको कहाँ हव्यवाह आहुति देते हैं अत: ऐसे अवसर पर अमरावती में अप्सराओं को अवकाश मिल जाता है। मैं कल मध्यरात्रि में ही गोकुल के लिए चल पड़ी तो किसी को भी आपत्ति नहीं थी। हमारे देवलोक का दिवस मान के छ: मास के बराबर होता है। उसमें भी यह दक्षिणायन की रात्रि। मैं गोकुल आ गयी सुरों की भी मध्यरात्रि व्यतीत होने पर तो वहाँ मुझे कौन ढूँढ़ेगा। महेन्द्र भी यहाँ आने को प्रस्तुत ही हो रहे थे। |
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