नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
58. विशाल-सखा-समूह
'आप क्या करोगे?' महात्मा कुछ पूछें तो बतलाना चाहिये, यह मैरी मैया कहती है; किन्तु सखा क्या दस-पाँच हैं कि मैं बतलाऊँगा। मैंने कहा- 'महाराज! सखा तो सैकड़ों हैं हमारे!' 'मैं तेरे ब्रज में अभी आया हूँ। चाहता हूँ कि तेरे राम-श्याम के जो सखा हैं, वे सायंकाल आवें तो देखते ही दूर से पहिचान लूँ। कोई समीप आवे तो उसका नाम न पूछना पड़े। मैं राम-श्याम को तो जानता हूँ।' मुनि महाराज ने कहा- 'तू मुख्य-मुख्य को तो बता ही दे।' हम सखाओं में तो सब समान हैं। हममें मुख्य-अमुख्य क्या होता है? लेकिन ये मुनि महाराज मानेंगे नहीं। मैया कहती हैं कि मुनि जो चाहते हैं, करके ही मानते हैं। अतः इन्हें कुछ तो गिनाने पड़ेंगे। इनके पूजा-पाठ का समय होगा तो अपने आप-से चले जायँगें। मैंने इनको बतलाना प्रारम्भ किया। हममें आयु के अनुसार सबसे बड़ा मधुमंगल है। हमारे दाऊ से दो वर्ष बड़ा लगता है; किंतु मैया कहती है कि यह कोई योगीश्वर है। बढ़ता ही नहीं अपने मन से। कोई नहीं जानता कितना बड़ा है। ब्राह्मण है, इसलिये क्या पता यह भी आप सबके समान मुनि भी हो। मन्त्र-पाठ तो करता है महर्षि के साथ कभी-कभी पूजा के अवसर पर। उजले शंख जैसा श्वेत वर्ण है। श्वेत वर्ण के ही वस्त्र पहनता है और श्वेत पुष्पों की माला प्रिय है इसे। मोटा-सा लम्बा पेट है। लम्बा मुख है। देह भी मोटा है और मोदक मिल जाय तो क्या पूछना- तत्काल जमकर बैठ जायगा। कोई काम नहीं करता। गायें भी घेरने नहीं जाता; किंतु हम सबको बहुत प्रिय है। सबको हँसाता रहता है। ब्राह्मण है, अतः इसे पहिले तो खिलाना ही चाहिये; किंतु कहता है- 'मिष्ठान्न जूँठा नहीं हुआ करता।' ऋषभ मेरे उपनन्द ताऊ का पुत्र है। दाऊ दादा से दो दिन ही छोटा है। गेहुँआ रंग है। पुष्ट लम्बा शरीर है और हरे वस्त्र पहिनता है। बहुत गंभीर है। सीधा इतना है कि हँसी में भी कुछ कहो तो सच मान लेता है। झगड़ना तो जानता ही नहीं, न कभी चिढ़ता है। रहता है दाऊ दादा के साथ लगा; किंतु कन्हाई पर दृष्टि लगाये रहता है कि श्याम को कुछ चाहिये। मोहन को कुछ करना है। कुछ कहेगा भी किसी से तो ऐसे बोलेगा जैसे प्रार्थना कर रहा हो, पर इसकी बात तो कन्हाई भी आदेश के समान मानता है। हम सब इसको आदर से 'बूढ़ा दादा' कहते हैं। |
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