नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष
'यशोदा! तुम पहिले इसे दूध तो पिलाओ।' इसकी छोटी तायी पीवरी ठीक कहती है- 'यह राक्षसी की गोद से लौटा है। उसका दूध पिया है इसने। तुम्हारा दूध पीने लगे तो हम सबको सन्तोष हो कि शिशु स्वस्थ है।' मैया ने अंक में लेकर अञ्चल की ओट में कर लिया है इनका मुख और लो- ये तो मैया का दूध इतने प्रेम से पीने लगे हैं, जैसे पूतना का पय तो केवल क्षुधा-वर्धक पाचक मात्र बना इनके लिए। अब ये तो दूध पीते-पीते सो जायेंगे। उधर वे छकड़े चले आ रहे हैं मथुरा से। व्रजराज और उनके साथ के गोप छकड़ों को दौड़ाते आ रहे हैं। मथुरा में वसुदेवजी ने कह दिया है- 'गोकुल में उत्पात हो रहे हैं, यहाँ अधिक मत रुको' और इन सब लोगों को गोकुल पहुँचने की बहुत शीघ्रता है। 'यह क्या है?' गोपों ने दौड़ते वृषभों को रोका- 'इतनी भयंकर राक्षसी! यह यहाँ ऐसे पड़ी है?' अनेक लोग छकड़ों से उतर पड़े।' 'यह तो पूतना है, कंस की मुँह बोली बहिन!' पहिचान लिया एक वृद्ध ने- 'यह प्रसिद्ध बाल-घातिनी यहाँ? यह तो मरी पड़ी है।' 'यह गोकुल की ओर से ही आयी है।' गोपों ने इधर-उधर देखकर पद-चिह्न पा लिए- 'अनेक गोपियाँ यहाँ तक आयी हैं; किंतु सब लौट गयी लगती हैं।' 'श्रीवसुदेवजी अवश्य योगीश्वर होंगे।' व्रजराज भरे कण्ठ बोले- 'उन्होंने कहा था कि गोकुल में उत्पात है और यह उत्पात तो प्रत्यक्ष है। श्रीनारायण मंगल करें!' 'यह गोकुल से बहुत दूर नहीं है।' उपनन्दजी ने कहा- 'इस भाद्रपद की उष्णता में शव शीघ्र सड़ता है। यहाँ सड़ेगी तो गोकुल में हम सबका रहना असम्भव हो जायगा। इसे आज ही दग्ध कर देना आवश्यक है।' 'इसे उठाना तो सम्भव नहीं है।' अभिनन्द ने कहा- 'गोप समीप के खड्डों में काष्ठ एकत्र करें। अपने यहाँ के अन्त्यज इसे कुठारों से काट-काटकर एक-एक अंग-खण्ड उठाकर उन खड्डों में डालकर अग्नि-दग्ध कर देंगे।' |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज