नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
36. चाचा सन्नन्द-दामोदर-मुक्ति
हमारे गोकुल का सबसे बड़ा महोत्सव यह इन्द्रयाग है। हम वनवासी गोप- हमारी गायें ही धन हैं। उन्हें तृण-जल भरपूर मिलता रहे, यही हमारा परम सुख है। वर्षा उत्तम हो तो पशुओं को तृण पर्याप्त मिले। अत: वर्षा के स्वामी सुरराज को सन्तुष्ट रखना दूसरे सबकी अपेक्षा हम गोपों के लिए बहुत आवश्यक है। हम सबने अत्यन्त उत्साह से यज्ञ की सामग्री संग्रह कर ली थी। घरों से गोघृत, दूध, दही तथा पकवानों की राशियाँ आकर लग गयी थीं। आज तो सम्पूर्ण गोकुल को पूजनोपरान्त एक साथ यहीं प्रसाद-ग्रहण करना था। आज गायों-वृषभों का पूजन होना था। उन्हें यहीं परितृप्त किया जाना था। उनको चराने जाने की चिन्ता नहीं थी। हम सभी चाहते थे कि पूजन-किञ्चित विलम्ब से प्रारम्भ हो तो उत्तम ही है। बड़ों के समान बालक तो इस कार्तिक में सबेरे स्नान नहीं कर सकते और वे पूजन में सम्मिलित तो होंगे ही। महर्षि से प्रार्थना कर दी गयी थी कल ही कि इन्द्रयाग में शीघ्रता करना अनावश्यक है। महर्षि स्वयं भी तो नीलमणि का बहुत ध्यान रखते हैं। उन्होंने कहा था- 'कल का यज्ञ केवल पुरुष ही सम्पन्न करते हैं। महिलाओं तथा शिशुओं को सम्मिलित कर लिया जायगा प्रारम्भिक पूजाओं के पश्चात। अत: माता के साथ कृष्णचन्द्र को प्रारम्भ में लाना आवश्यक नहीं है। उनको अन्त में बुला लिया जायगा।' बालक मानते कहाँ हैं। रानी भाभी रोहिणीजी को आना ही था व्यवस्था सम्हालने। वे तो हमारे गोकुल की अधीश्वरी हैं। उनकी व्यवस्था में, उनकी कर छाया में ही तो हमारे सब कार्य निर्विघ्न पूर्ण होते हैं। वे आयीं तो दाऊ चला आया उनके संग। इस बल को रोका नहीं जा सकता और शिशु होने पर भी यह किसी मुनि से अधिक ही शान्त है। यह तो एक स्थान पर बैठा रहेगा चुपचाप। दाऊ के आने से एक सुविधा और हो जाती है। दूसरे सब शिशु इसके समीप ही रहते हैं। भैया ब्रजराज के साथ ही रहता है, सोता है छोटे भाई नन्दन का भ्रद। उसे तो आना ही था, दूसरे भी दाऊ के समवयस्क शिशु आ गये सबेरे ही। दाऊ के साथ ये सब स्नान करके शान्त बैठ गये। मुझे केवल इन सबको स्नान करा देना पड़ा। मैंने कह दिया- 'किसी सामग्री को स्पर्श मत करना! चुपचाप देखो अथवा यहीं समीप खेलो!' |
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