कनू मेरे,
अपने चारु चरितों का तुमने प्रकाश दिया,
अन्तर पवित्र किया।
किसमें सामर्थ्य है-
कोई शक्ति - कोई साधन तुमको छुए।
अपना बनाया मुझे,
स्वतः तुम मेरे हुए।
अपना यह चरित अब तुम्हीं स्वीकार करो।
इसको कृतार्थ करो।
इतना और-
कृपासिन्धु, रसिक-सिरमौर!
इनको अपनावें जो,
पढे़ं-सुनें अपनावें-
जिनको तुम्हारा उज्ज्वल सुयश भावे,
उन्हें अपनाओ, उन्हें स्वीकार करो।
उनमें प्रीति-भाव भरो।
उनपर रहो सदय-
नन्द-तनय!