नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
77. सुदेवी-प्रमुख सखियों का परिचय
मैं तनिक शीघ्र चली गयी प्रदोष-काल में अपने इन गोपेश्वर का पूजन करने। इन आशुतोष प्रभु का वात्सल्य प्राप्त करने में भी क्या प्रयत्न करना पड़ता है। वृन्दावन में इनका श्रीविग्रह तो कहने को है। जब प्रार्थना करो, गंगाधर, चन्द्रमौलि त्रिलोचन, नीलकण्ठ, भुजगभूषण विभूति भव्य कर्पूर गौरांग, कृत्तिवास प्रभु प्रत्यक्ष प्रकट हो जाते हैं। मैंने वरदान माँगा- 'श्यामा-श्याम के युगल चरणों में मेरी अनुरक्ति अनुदित बढ़़ती रहे!' 'एवमस्तु' इन प्रणतपाल से दूसरा कुछ तो सुना नहीं जा सकता। लेकिन साथ ही सस्मित पूछ बैठे-'सुदेवी, वत्से! अपनी स्वामिनी की प्रमुख सखियों का परिचय तो बता दे मुझे।' मैंने भूमि में मस्तक रखा। अंजलि बाँधकर बोली- 'प्रभु! अपनी स्वामिनी को तो मैं कभी समझ नहीं सकी। ये श्यामा-श्याम परस्पर परिवर्तित होते ही रहते हैं। कभी एक गौर बन जाता है, कभी दूसरा। कौन कीर्तिकुमारी और कौन नन्दनन्दन, कुछ पता नहीं लगता। योगीश्वर प्रभु सस्मित बोले- 'वे दोनों एक ही हैं। एक ही तत्त्व इन दो रूपों में उल्लसित होता है। रसराज और महाभाव पृथक नहीं होते। यह इनका लीला-विलास है। देखती ही है कि मैं अर्धनारीश्वर हूँ। इन्हें एक ही देह में यह युगमत्व स्वीकार नहीं। इसलिये दो रूप में दीखते रहते हैं। तू इनकी बात छोड़ दे। इनकी प्रमुख सखियों का परिचय दे दे।' मैं कई क्षण मूक रह गयी। आज मैं सचमुच भगवान धूर्जटि के अर्धांग में अम्बा का दर्शन कर रही थी और वात्सल्यमयी तो हम बालिकाओं पर सदा सदय सानुकूल रहती हैं। इनकी उपस्थिति ने ही मुझे बोलने का साहस दिया। मैंने संक्षिप्त ही परिचय सुनाया। जैसे अष्टदल पद्म हो, ऐसे आठ प्रमुख यूथेश्वरी सखियाँ हैं हमारी। श्रीश्यामा-श्याम जब रास में मध्य कर्णिका पर अवस्थित होते हैं तो इन परमान्तरंगा प्रधान मंजरी भूता सखियों का भी सुनिश्चित स्थान होता है। मध्य कर्णिका पर जब उत्तराभिमुख श्रीश्यामा-श्याम अवस्थित होते हैं तो अन्तर्दल के रूप में अष्ट सखियाँ उनकी सेवा में समीप होती हैं[1] पश्चिम में वाम पार्श्व में श्रीवृषभानु-नन्दिनी के समीप प्रायः उनके समान वर्ण की, स्वर्ण किरण सदृश कृशांगी, पाटलवस्त्रा प्रधान सखी ललिता। वायव्य में पीतवस्त्रा श्यामला, सम्मुख उत्तर में अपने नाम के समान ही धानी वस्त्रधारिणी धन्या, ईशान में हरिप्रिया रंगदेवी सुचित्रित वस्त्रा, पूर्व में तनिक श्यामा भास, केशरिया परिधाना, कालिन्दी की दूसरी मूर्ति विशाखा, श्यामसुन्दर के समीप उनके दक्षिण पार्श्व में, आग्नेय में उज्ज्वल वस्त्रा, चन्द्रोज्वला धन्या, दक्षिण में पृष्ठ भाग में पाटलवस्त्रा पद्मा और नैऋत्य में अरुण वस्त्रा, पाटलवर्णा अनंग मंजरी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इनके नामों और क्रमों में बहुत अन्तर है ग्रन्थों में। यहाँ महामहोपाध्यय डा. गोपीनाथ कविराज के 'श्रीकृष्ण-प्रसंग' के अनुसार वर्णन है।
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