नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
7. चन्द्रदेव-बाबा-मैया का परिचय
सिन्धुजा के कारण मैं समुद्रोद्भ्व, श्रीनारायण का श्यालक हूँ और यही सम्मान किसी के लिए कम नहीं है; किंतु इस बार तो परात्पर पुरुष ने मुझे कुल-पुरुष बनाकर जो गौरव दिया, उससे अब कोई संकोच नहीं कि श्रुति के स्वरों में वेदज्ञ ब्राह्मण कहते हैं-
मुझ शशि को भगवान भूतनाथ ने भाल-भूषण बनाकर सनाथ कर दिया था और अब तो मैं सचमुच सुधाकर हो गया हूँ। अपनी सम्पूर्ण शक्ति से व्रजधरा को सुधा-सिञ्चित करके मैं धन्य-धन्य हूँ। मथुरा, द्वारिका में ही नहीं, व्रज में भी उन परात्पर पुरुष ने मुझे कुल-पुरुष होने का गौरव प्रदान किया है इस बार। कभी-कभी सृष्टिकर्त्ता भी इन लीलामयी की लीलाओं में भ्रान्त हो जाते हैं तो मेरी क्या गणना; किंतु इस बार देवी योगमाया भी मेरे कुल में आयीं तो आने से भी पूर्व उन्होंने मुझ पर अपना प्रभाव डालने में संकोच प्रारम्भ कर दिया। अत: मैं स्पष्ट समझ सका कि सृष्टिकर्त्ता को परमपुरुष के परिकरों में कहाँ कैसे भ्रम हो गया। अब ये गोकुल में देवी रोहिणी हैं। भगवान ब्रह्मा ही भूल में हैं कि ये नागमाता कद्रू हैं तो सुरों की समझ कहाँ इनके स्वरूप की छाया छू सकती है। उस दिन महर्षि कश्यप ने कहा- 'पुरन्दर के जन्म से पूर्व की बात है, मैं नागमाता कद्रू के समीप था और देवी अदिति मेरे सामीप्य को उत्सुक थीं। मुझे विलम्ब हुआ तो अदिति को लगा कि कद्रू ने मुझे रोक लिया है। उन्होंने कद्रू को रुष्ट होकर मानव-योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। जब कद्रू ने सुना, उन्होंने भी यही शाप अदिति को दिया। अब मैं अंशरूप से मथुरा में वसुदेव के रूप में उत्पन्न हुआ तो अदिति देव की तथा कद्रू रोहिणी के रूप में आ गयीं। लेकिन अब देवकी के लिए रोहिणी परमप्रिय हैं और रोहणी देवकी पर प्राण देती हैं।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यजुर्वेद 10.18
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