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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
108. गीता का परिणाम और पूर्ण शरणागति
तात्पर्यगीता परिमाण की संगति ठीक-ठीक बैठ जाने से यह तात्पर्य निकलता है कि जब मनुष्य संसार से हटकर अपना कल्याण चाहता है और वचनमात्र से भी भगवान् की शरण हो जाता है, तब (भगवत्परायण होने से) उसका कल्याण होना निश्चित है। पूर्ण शरणागत होने पर तो एक भगवान् ही रह जाते हैं अर्थात् भक्त और भगवान् में कोई भेद नहीं रहता।
गीतोक्त संक्षिप्त सूक्ति संग्रहजब कोई वाक्य या वाक्यांश अपनी जगह से अलग कर देने पर भी सुनने मात्र से किसी अनुभव, उपदेश आदि का ज्ञान कराता है, तब वह ‘सूक्ति’ कहलाता है। यद्यपि गीता के सभी श्लोक सूक्तियाँ हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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