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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
6. गीता में मूर्ति-पूजा
ज्ञातव्य
उत्तर- भगवान् के दरबार में वस्तु की प्रधानता नहीं है, प्रत्युत भाव की प्रधानता है। भाव के कारण ही भगवान् भक्त के द्वारा अर्पित वस्तुओं और क्रियाओं को ग्रहण कर लेते हैं। भक्त का भाव भगवान् को भोजन कराने का होता है तो भगवान् को भूख लग जाती है और वे प्रकट होकर भोजन कर लेते हैं। भक्त के भाव के कारण भगवान् जिस वस्तु को ग्रहण करते हैं, वह वस्तु नाशवान् नहीं रहती, प्रत्युत दिव्य, चिन्मय हो जाती है। अगर वैसा भाव न हो, भाव में कमी हो, तो भी भगवान् भक्त के द्वारा भोजन अर्पण करने मात्र से संतुष्ट हो जाते हैं। भगवान् के संतुष्ट होने में वस्तु और क्रिया प्रधानता नहीं है, प्रत्युत भाव ही प्रधानता है। संतों ने कहा है-
हमें एक सज्जन मिले थे। उनकी एक संत पर बड़ी श्रद्धा थी और वे उनकी सेवा किया करते थे। वे कहते थे कि जब महाराज प्यास लगती तो मेरे म न में आती कि महाराज को प्यास लगी है; अतः मैं जल ले जाता और वे पी लेते। ऐसे ही जो शुद्ध पतिव्रता होती है, उसको पति की भूख-प्यास का पता लग जाता है तथा पति की रुचि भोजन के किस पदार्थ में है- इसका भी पता लग जाता है। भोजन सामने आने पर पति भी कह देता है कि आज मेरे मन में इसी भोजन की रुचि थी। इसी तरह जिसके मन में भगवान् को भोग लगाने का भाव होता है, उसको भगवान् की रुचि का, भूख प्यास का पता लग जाता है। एक मंदिर के पुजारी थे। उनके इष्ट भगवान् बालगोपाल थे। वे रोज छोटे-छोटे लड्डू बनाया करते और रात के समय जब बालगोपाल को शयन कराते, तब उनके सिरहाने वे लड्डू रख दिया करते क्योंकि बालक को रात में भूख लग जाया करती है। एक दिन वे लड्डू रखना भूल गये तो रात में बालगोपाल ने पुजारी को स्वप्न में कहा कि मेरे को भूख लग रही है! ऐसे ही एक और घटना है। एक साधु थे। वे प्रतिवर्ष दीपावली बाद (ठण्डी के दिनों में) भगवान् को काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट आदि का भोग लगाया करते थे। एक वर्ष सूखा मेवा बहुत महँगा हो गया तो उन्होंने मूँगफली का भोग लगाना शुरू कर दिया। एक दिन रात में भगवान् ने स्वप्न में कहा कि क्या तू मूँगफली ही खिलायेगा? उस दिन के बाद उन्होंने पुनः भगवान् का काजू आदि का भोग लगाना शुरू कर दिया। पहले उनके मन में कुछ वहम था कि पता नहीं, भगवान् भोग को ग्रहण करते हैं या नहीं? जब भगवान् ने स्वप्न में ऐसा कहा, तब उनका वहम मिट गया। तात्पर्य है कि कोई भगवान् को भाव से भोग लगाता है तो उनको भूख लग जाती है और वे उसको ग्रहण कर लेते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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