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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
105. गीता संबंधी व्याकरण की कुछ बातें
(2)जब द्विकर्मक धातु भावकर्म प्रक्रिया में आ जाती है, तब द्विकर्मक ‘दुह्’, ‘याच्’ आदि धातुओं के अप्रधान कर्म में लकार हो जाता है, जैसे- ‘तेन गौः पयः दुह्ते’ आदि; और ‘नी’, ‘हृ’ आदि धातुओं के प्रधान कर्म में लकार हो जाता है[1] जैसे- ‘तेन ग्रामम् अजा नीयते’ आदि। परंतु जब ण्यन्त धातु भाव कर्म प्रक्रिया में आती है, तब ज्ञानार्थक, भक्षणार्थक और शब्दकर्मक धातुओं के किसी भी (प्रयोज्य या अप्रयोज्य) कर्म में लकार कर सकते हैं,[2] जैसे- ‘गुरुणा छात्रो वेदार्थं’- ‘छात्रं वेदार्थः वेद्यतेः’; ‘मात्रा बालकः भोजनं’- ‘बालकं भोजनं आश्यते’ आदि। इन धातुओं को छोड़कर जितनी (गत्यर्थक, अकर्मक आदि) ण्यन्त धातुएँ हैं, उनके तो प्रयोज्य कर्म में ही लकार करना चाहिए;[3] जैसे ‘यज्ञदत्तेन देवदत्तो ग्रामं गम्यते’ आदि। गीता में भी तीसरे अध्याय के पाँचवें श्लोक में अण्यन्त से ण्यन्त और ण्यन्त से भावकर्म प्रक्रिया का प्रयोग हुआ है; जैसे- ‘अण्यन्त’- ‘अवशः सर्वः कर्म करोति’ (स्वभाव के परवश सब जीव कर्म करते हैं)। ‘ण्यन्त’- ‘तं प्रकृतिजा गुणाः प्रेरयन्ति’ (उनको प्रकृतिजन्य गुण कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं)- ‘प्रकृतिजा गुण अवशं सर्वं कर्म कारयन्ति’ (प्रकृतिजन्य गुण अवश हुए प्राणियों से कर्म कराते हैं)। ‘भावकर्म- प्रक्रियान्त’- ‘प्रकृतिजैः गुणैः अवशः सर्वः कर्म कार्यते’ (प्रकृतिजन्य गुण स्वभाव के परवश हुए प्राणियों से कर्म कराते हैं) ज्ञातव्यद्विकर्मक धातुओं से भावकर्म- जो धातुएँ द्विकर्मक हैं, उनको भावकर्म में ले जाने पर ‘दुह्’, ‘याच्’ आदि धातुओं के गौण कर्म में लकार होगा; जैसे- ‘गोविन्दः गां दोग्धि पयः’ (गोविन्द गाय से दूध दुहता है), इस द्विकर्मक ‘दुह्’ धातु को भावकर्म में ले जाने पर ‘गौणे कर्मणि दुह्यादेः’ इस नियम के अनुसार गौण कर्म ‘गाम्’ में लकार होगा। लकार से उक्त होने से ‘गो’ शब्द में प्रथमा हो गयी; अतः ‘गोविन्देन गौः पयः दुह्यते’। इस प्रकार द्विकर्मक ‘दुह्’ ‘याच्’ आदि बारह धातुओं के प्रयोग समझ लेने चाहिए। ‘कृष्णः गां व्रजं नयति’- इस द्विकर्मक धातु को भावकर्म में ले जाने पर ‘प्रधाने नीहृकृष्वहाम्’ इस नियम से प्रधान कर्म में लकार होगा; जैसे- ‘कृष्णेन गौः व्रजं नीयते’। इस प्रकार द्विकर्मक ‘नी’ ‘हृ’ आदि चार धातुओं के प्रयोग समझ लेने चाहिए। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गौणे कर्मणि दुह्यादेः प्रधाने नीहृकृष्वहाम्
- ↑ बुद्धिभक्षार्थयोः शब्दकर्मणां च निजेच्छाया।
- ↑ प्रयोज्यकर्मण्यन्येषां ण्यन्तानां लादयो मताः।
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