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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
गीता संबंधी प्रश्नोत्तर
उत्तर- भगवान् ने गीतोपदेश के समय अर्जुन को भक्तियोग और कर्मयोग का अधिकारी माना था और मध्यम पुरुष से प्रायः भक्तियोग और कर्मयोग का ही उपदेश दिया था। अतः अर्जुन भक्तियोग और कर्मयोग की बातें नहीं भूले, प्रत्युत ज्ञान की बातें ही भूले थे। इसलिए अनुगीता में भगवान् ने ज्ञान का ही उपदेश दिया।
उत्तर- जैसे बछड़ा गाय का दूध पीने लगता है तो गाय के शरीर में रहने वाला दूध स्तनों में आ जाता है, ऐसे ही श्रोता उत्कण्ठित होकर जिज्ञासा पूर्वक कोई बात पूछता है तो वक्ता के भीतर विशेष भाव स्फुरित होने लगते हैं। गीता में अर्जुन ने उत्कण्ठा और व्याकुलता पूर्वक अपने कल्याण की बातें पूछी थीं, जिससे भगवान् के भीतर विशेषता से भाव पैदा हुए थे। परंतु अनुगीता में अर्जुन की उतनी उत्कण्ठा, व्याकुलता नहीं थी। अतः गीता में जैसा रसलीला वर्णन आया है, वैसा वर्णन अनुगीता में नहीं आया।
उत्तर- वास्तव में विभूतियाँ कहने में भगवान् का तात्पर्य किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का महत्त्व बताने में नहीं है, प्रत्युत अपना चिंतन कराने में है। अतः गीता और भागवत- दोनों ही जगह कही हुई विभूतियों में भगवान् का चिंतन करना ही मुख्य है। इस दृष्टि से जहाँ-जहाँ विशेषता दिखायी दे, वहाँ-वहाँ वस्तु, व्यक्ति आदि की विशेषता न देखकर केवल भगवान् की ही विशेषता देखनी चाहिए और भगवान् की ही तरफ वृत्ति जानी चाहिए। तात्पर्य है कि मन जहाँ-कहीं चला जाय, वहाँ भगवान् का ही चिंतन होना चाहिए- इसके लिए ही भगवान् ने विभूतियों का वर्णन किया है। [5] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (महाभारत, आश्वमेधिक. 16।6)
- ↑ (महाभारत, आश्वमेधिक. 16।12-13)
- ↑ (दसवें अध्याय में)
- ↑ (ग्यारहवें स्कंध के सोलहवें अध्याय में)
- ↑ (10।41)
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