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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
25. गीता में जीव की गतियाँ
2. लौटकर आने वाले- 1. जो स्वर्गादि का सुख भोगने के उद्देश्य से सकाम कर्म करते हैं, वे अपने पुण्यों के फलस्वरूप कृष्ण मार्ग से स्वर्गादि लोकों में जाते हैं और वहाँ अपने-अपने पुण्यों के अनुसार सुख भोगते हैं। पुण्य समाप्त होने पर वे फिर लौटकर मृत्युलोक में आते हैं।[1] 2. जो परमात्मप्राप्ति के साधन में लगे हुए हैं, पर जिनकी सांसारिक वासना अभी सर्वथा नहीं मिटी है, वे अंत समय में किसी वासना के कारण अपने साधन से विचलित हो जाते हैं तो वे स्वर्गादि ऊँचे लोकों में जाते हैं। ऐसे योगभ्रष्ट मनुष्य बहुत लम्बे समय तक स्वर्गादि लोकों में रहते हैं। जब वहाँ के भोगों से उनकी अरुचि हो जाती है, तब वे लौटकर मृत्युलोक में आते हैं और शुद्ध श्रीमानों के घर में जन्म लेते हैं।[2] अधोगति - अधोगति में दो प्रकार के जीव जाते हैं- 1. चौरासी लाख योनियों में जाने वाले- जीव अपने पाप कर्मों के अनुसार पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि नीच योनियों में जाते हैं और वहाँ निरंतर उन योनियों की यंत्रणा भोगते हैं।[3][4] 2. नरक में जाने वाले- जीव अपने पापकर्मों के अनुसार रौंरव, कुम्भीपाक आदि भयंकर नरकों में जाते हैं और वहाँ उन नरकों की भयंकर यंत्रणा भोगते हैं।[5] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (8।25; 9।21)
- ↑ (6।41)
- ↑ (16।19)
- ↑ भगवान् ने योगभ्रष्ट के लिए कहा कि वे स्वर्ग में बहुत समय तक रहते हैं- ‘शाश्वतीः समाः’(6।41) और पाप-कर्म करने वालों के लिए कहा कि मैं उनको निरंतर नीच (आसुरी) योनियों में गिराता हूँ अर्थात् वे नीच योनियों में निरंतर रहते हैं- ‘अजस्रम्’(16।19) इसका तात्पर्य यह हुआ कि योगभ्रष्ट तो एक स्थान पर ही बहुत समय तक रहते हैं, पर पाप कर्म करने वालों की नीच योनियाँ बदलती रहती हैं।
- ↑ (16।16)
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