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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
2. गीता संबंधी प्रश्नोत्तर
उत्तर- पाप तो पिण्ड प्राणो का वियोग करने का लगता है; क्योंकि प्रत्येक प्राणी पिण्ड प्राण में रहना चाहता है, जीना चाहता है। यद्यपि महात्मा लोग जीना नहीं चाहते, फिर भी उन्हें मारने का बड़ा भारी पाप लगता है; क्योंकि उनका जीना संसारमात्र चाहता है। उनके जीने से प्राणिमात्र का परम हित होता है, प्राणिमात्र को सदा रहने वाली शान्ति मिलती है। जो वस्तुएँ प्राणियों के लिए जितनी आवश्यक होती हैं, उनका नाश करने का उतना ही अधिक पाप लगता है।
उत्तर- जब यह प्रकृति के अंश शरीर को अपना मान लेता है, उसके साथ तादात्म्य कर लेता है, तब यह प्रकृति के अंश के आने-जाने को, उसके जीने-मरने को अपना आना-जाना, जीना-मरना मान लेता है। उसी दृष्टि से इसका अन्य शरीरों में चला जाना कहा गया है। वास्तव में तत्त्व से इसका आना-जाना, जीना-मरना है ही नहीं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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