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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
10. गीता में भगवान् की उदारता
प्रायः लोग दूसरों की श्रद्धा अपने में कराने के लिए कई तरह का नाटक करते हैं, दूसरों को अपना ही दास, शिष्य बनाने के चक्कर में रहते हैं, पर भगवान् की यह विचित्र उदारता है कि जो अपनी कामना पूर्ति के लिए जिस देवता की श्रद्धापूर्वक उपासना करना चाहता है, भगवान् उसकी श्रद्धा को उसी देवता के प्रति दृढ़ कर देते हैं, और उसकी उपासना का फल भी दे देते हैं।[1] अंत समय में मनुष्य जिस जिसका चिंतन करता है, शरीर छोड़ने के बाद उस-उसको प्राप्त हो जाता है।[2] इस विधान में भगवान् की कितनी उदारता भरी हुई है कि अंत समय में जैसे हरिण का चिंतन होने से भरतमुनि को हरिण की योनि प्राप्त हो गयी, ऐसे ही भगवान् का चिंतन होने से भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। तात्पर्य है कि जिस अंतिम चिंतन से हरिण आदि योनियों की प्राप्ति होती है, उस चिंतन से भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। भगवान् की इस उदारता का कोई पारावार नही है! ब्रह्मलोक तक जितने भी लोक हैं, उनमें जाने पर फिर लौटकर आना पड़ता हैं, जन्म मरण के चक्कर में जाना पड़ता है परंतु भगवान् की प्राप्ति होने पर फिर लौट कर संसार में नहीं आना पड़ता[3] यह भगवान् की कितनी महती उदारता है! जो अनन्यभाव से भगवान् की उपासना में लग जाते हैं, उनको भगवान् अप्राप्त की प्राप्ति करा देते हैं,[4] चाहे वह प्राप्ति लौकिक हो अथवा पारलौकिक। लौकिक प्राप्ति में भगवान् उनके शरीर तथा कुटुम्ब परिवार के निर्वाह का प्रबंध करा देते हैं, उनकी तथा उनके कुटुम्ब की रक्षा करते हैं। परंतु इसमें एक विलक्षण बात है कि जिनकी प्राप्ति करा देने से उनका हित हो, वे संसार में न फँसते हों, उन चीजों की प्राप्ति तो भगवान् करा देते हैं; पर जिनकी प्राप्ति करा देने से उनका हित न होता हो, वे संसार में फँसते हों, उन चीजों की प्राप्ति भगवान् नहीं कराते। जैसे, नारद जी के मन में विवाह करने की आयी तो भगवान् ने उनका विवाह नहीं होने दिया क्योंकि इसमें उनका हित नहीं था। अगर लौकिक प्राप्ति कराने से उनका पतन न होता हो तो उनकी लौकिक चाहना न होने पर भी भगवान् लौकिक प्राप्ति करा देते हैं। जैसे, ध्रुव जी ने पहले सकामभाव से भगवान् की उपासना की। उस उपासना से उनके मन का सकामभाव मिट गया, तो भी भगवान् ने उनको छत्तीस हजार वर्ष के लिए राज्य दे दिया तथा ध्रुवलोक बना दिया। तात्पर्य है कि उनको अलौकिक (पारलौकिक) चीज तो भगवान देते ही हैं, पर लौकिक चीज से उनका भला होता हो तो लौकिक चीज की प्राप्ति भी भगवान् करा देते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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