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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीता में विश्व रूप-दर्शन
भगवान् की सृष्टि अनन्त है। हम जिस भूमण्डल में हैं, यह तो एक सृष्टि का एक अत्यन्त क्षुद्र अंशमात्र हं नक्षत्रविज्ञानी तत्व वेत्ताओं का कहना है कि यह सूर्य हमारी पृथ्वी से नौ करोड़ मील की दूरी पर स्थित है। परंतु ऐसे-ऐसे अति विशाल नक्षत्र भी हैं, जहाँ की आलोक-रश्मि को पृथ्विी तक पहुँचते चैदह करोड़ वर्ष लग जाते हैं। जान रखना चाहिये कि वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार आलोक रश्मि की गति प्रति सेकेण्ड एक लाख छियासी हजार मील है। अब हिसाब लगाइये कि इतनी तेज चाल से चलने वाली आलोक -रश्मि को जिस नक्षत्र से यहाँ तक आते-आते चैदह करोड़ वर्ष लग जाते हैं वह यहाँ से कितनी दूरी पर होगा। ऐसे अगणित नक्षत्र हमारे विश्व में हैं, ये सब नक्षत्र चैदह[1]1 प्रधान लोकों के अन्तर्गत विभिन्न लोकमात्र हैं और ऐसे विश्वों की गणना असंख्य है। देवीभागवत में कहा है- संख्या चेद् रजसामस्ति विश्वानां न कदाचन। ‘धूल के कणों की गिनती हो सकती है, परंतु विश्व ब्रह्माण्डों की नहीं हो सकती। इन ब्रह्माण्डों में से प्रत्येक ब्रह्माण्ड में पृथक्-पृथक् ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं। अतएव जिस प्रकार ब्रह्माण्डों की संख्या नहीं है इसी प्रकार ये ब्रह्मा, विष्णु और शिवादि भी असंख्य हैं।’ ये सब ब्रह्मा, विष्णु और शिव जिन के अंशावतार हैं, वे अवतारी एक महेश्वर हैं। उन्हीं को पुरुषोत्तम, महाविष्णु, महाशिव, श्रीकृष्ण, श्रीराम, महाशक्ति, आदि कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1. चैदह भुवन हैं-भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, और सत्यलोक- ये सात देवताओं के ऊध्र्वलोक हैं और अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल-ये सात असुरों के अधोलोक हैं। ये ही चैदह भुवन हैं। इनके अन्तर्गत अनेकों लोक-लोकान्तर हैं।
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