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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 241-247
उसके बाद दुर्योधन ने फिर मंत्रणा-सभा जोड़ी कि अब क्या करना चाहिए। ऐसे अवसर पर उसके दिल को शक्ति देने के लिए कर्ण ने सलाह दी, ‘‘हे राजन, इस समय तुम सारी पृथ्वी का इन्द्र के समान शासन करने वाले हो। पाण्डवों ने जैसे राजसूय-यज्ञ किया था।, तुम भी करो।’’ कर्ण की यह बात सुन दुर्योधन खिल उठा। उसने पुरोहित को बुलाकर राजसूय-यज्ञ करने की आज्ञा दी। किन्तु पुरोहित ने कहा, ‘‘युधिष्ठिर के जीते-जी और अपने पिता के जीवित रहते तुम्हारा राजसूय करना ठीक नहीं। तुम राजाओं से कर लेकर सोने का हल बनवाओ, और उससे यज्ञवाट की भूमि को जोतो। यही सत्पुरुषों के लिए उचित वैष्णव यज्ञ है। यह भी राजसूय की जोड़ का है। यह बिना विघ्न के सफल भी हो जायगा।’’ दुर्योधन ने पुरोहित की बात के मर्म को समझ लिया कि राजसूय करने से टंटा बढ़ेगा। अतएव उसने इसी प्रकार का यज्ञ करना निश्चित किया। अनेक राजाओं को निमंत्रण भेजे गए। पाण्डवों के पास भी दूत गया। यज्ञ की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘हमें भी जाना चाहिए, किन्तु इस समय नहीं तेरहवें वर्ष की समाप्ति तक हमें बाट देखना है।’’ तब दुर्योधन ने जैसे हो सका, धूमधाम से अपना यज्ञ समाप्त किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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