भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 1
भार्गव-सामग्री महाभारत के उस अंश में है, जिसका निर्माण उपाख्यानों से हुआ। अतएव यह असन्दिग्ध परिणाम निकाला जा सकता है कि महाभारत के वर्तमान संस्करण में भारत कथाओं के साथ भार्गव-उपाख्यानों का जानबूझकर गठबन्धन किया गया। महाभारत की अनुश्रुति के अनुसार ग्रन्थ के संस्कर्ताओं ने सौभाग्य से इस बात को स्पष्ट स्वीकार किया है कि व्यास का मूल ग्रन्थ भारत 24,000 श्लोकों का था और उसमें उपाख्यान नहीं थे।[1] किन्तु भार्गव शौनक के द्वादशवर्षीय यज्ञ में लोमहर्षण के पुत्र पौराणिक उग्रश्रवा सूत ने जिस ग्रन्थ का पारायण किया, उसमें घटनास्थल अशान्त कौरव राजसभा से उठकर भार्गवों के प्रशांत आश्रम में स्थापित होता है। कथा-भाग के अतिरिक्त महाभारत की नीति और धर्म-सम्बन्धी सामग्री पर भी भार्गव प्रभाव पड़ा। यह सर्वसम्मत है कि धर्म और नीति का जैसा सर्वांगपूर्ण और गम्भीर विवेचन महाभारत में प्राप्त है, जिसके कारण हिन्दू संस्कृति में इसे स्मृति का पद दिया गया और राष्ट्र की दृष्टि में शाश्वत सम्मान प्राप्त हुआ, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं है। धर्म और नीति विषय में भी भृगुओं का विशेष प्रभाव था। मनु द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र सुनाने का कार्य भृगु ने ही किया, जिसके कारण मनुस्मृति को आज भी भृगुसंहिता कहा जाता है। भार्गव शुक्र का नीति विषय से सम्बन्ध प्रसिद्ध ही है। डा. बूहलर की गणना के अनुसार मनुस्मृति के 260 श्लोक (समग्र ग्रन्थ का लगभग दशमांश) महाभारत के तीसरे, बारहवें और तेरहवें पर्वों में पाये जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदि. 1।61
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