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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 43-51
दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर की अतुल संपत्ति का हाल सुनाते हुए कहाः “वहाँ इन्द्रप्रस्थ के राजभवन मे दस सहस्र स्नातक सोने की थाली में नित्य भोजन पाते हैं। कम्बोज देश[1] के राजा ने कीमती कंबल, और कदली-मृग के काले, लाल और सांवले समूर युधिष्ठिर के लिए उपहार में भेजे। वहीं के राजा ने भेड़ों की खाल से बने हुए (एड) और वृषदंश नामक जंगली बिलावों के चमड़े से बने हुए वस्त्र (वार्षदंश चैल) जिनके ऊपर सुनहला काम बना हुआ था (जातरूपपरिष्कृत) और बकरे की खालों से बने हुए प्रावार नामक ओढ़ने के कंबल भेजे। उसी देश से तित्तिरकल्माष रंग के तीन सौ गुल्दार घोड़े भी प्राप्त हुए। पीलू, शमी और इंगुदी के पत्ते खाकर तगड़े बने तीन सौ ऊंट और खच्चर भी लाये गये। गोवासन देश[2] के राजा, ब्राह्मण जनपद[3] और दासमीय[4] सोने के बने हुए कमण्डलु लेकर उपस्थित हुए, तब उन्हें प्रवेश मिला। “कार्पासिक[5] देश के निवासी स्वर्णालंकार से भूषित लम्बे केश वाली छरहरे बदन की युवती दासियां एवं रंकु नामक बड़े बालों वाले बकरों की खालें लेकर आये। भरुकच्छ के निवासी गान्धार देश में उत्पन्न उत्तम घोड़े भेंट में लाये। सिन्धु नदी के मुहाने के इस पार के लोग, जहाँ नदी-मुख की सिंचाई से धान्य उत्पन्न होता है, सिंधु के उस पार के लोग, जहाँ केवल इन्द्र की कृपा पर ही वृष्टि निर्भर है, कच्छ-कठियावाड़ के प्रायःद्वीप के लोग,[6] बलूचिस्तान के पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले वैराम, पारद,[7] बंग,[8] कितव[9]- ये सब अनेक प्रकार के रत्न, भेड़, बकरी, गो, हिरण्य, ऊंट, गधे, अंगूरी शराब[10] और अनेक प्रकार के कम्बल लेकर उपस्थित हुए तो भी उन्हें मुलाकात के लिए महल के द्वार पर ही रुक जाना पड़ा। ‘‘प्राग्ज्योतिष देश का राजा भगदत्त यशब के बने हुए कीमती बरतन[11] और सफेद हाथीदांत की मूठों वाली तलवार उपहार में देकर वापस गया। और भी कितने ही राजाओं को मैंने वहाँ देखा। द्वयक्ष (बदख्शां) त्र्यक्ष (तर्खान) और ललाटाक्ष (लद्दाख) के पग्गडधारी राजा वहाँ आये। विशेषतः एकपाद संज्ञक कबीले के लोग बीरबहूटी के और सुग्गे के रंग के अनेक घोड़े लेकर उपस्थित हुए। चीन, हूण, शक, ओड्र, पर्वतीय[12], हारहूर[13] और हैमवत,[14] इन राजाओं का वर्णन मैं कहाँ तक करूं, जो राजद्वार पर रुके हुए थे और भेंट में देने के लिए अपने साथ काली गरदन वाले, महाकाय, सौ योजन-गामी काबुली गधे लेकर आये थे? उनके साथ बाह्ली (बल्ख) और चीन देश के बने हुए ऊनी (और्ण), रेशमी (कीटज), और पाट (पट्टज) के बहुत प्रकार के मुलायम वस्त्र, कमल के समान ललाई लिये हुए नम्दे (कुट्टीकृत), मध्य एशिया के रंकु नामक बकरे के लम्बे बालों के रांकव कम्बल, भेड़-बकरों की खालों की पोस्तीन,[15] लम्बी तेज तलवारें, भाले, बरछे और तीखे फरसे एवं अनेक प्रकार की सुगन्धियां और रत्न उपहार की सामग्री में सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त शक, तुषार[16], कंक,[17], रोमश,[18] और श्रृंगी[19]-ये सब लोग तेज चाल वाले अगणित घोड़े और असंख्य सुवर्ण लेकर उपस्थित हुए। पूर्व देश का राजा भी मूल्यवान आसन, सवारी और मणि-जटिल दांत के पलंग, भाँति-भाँति के सुनहले रथ, जिनमें सिखाये हुए घोड़े जुते थे और जो व्याघ्र चर्म से मढ़े हुए थे, एवं विवित्र कालीन और नाराच अर्ध-नाराच आदि शस्त्र लेकर महात्मा युधिष्ठिर के यज्ञ-सदन में प्रविष्ट हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वंक्षु के उत्तर का पामीर प्रदेश
- ↑ संभवतः शिवि देश, जो गोधन के लिए प्रसिद्ध था
- ↑ सिन्ध में ब्राह्मणाबाद
- ↑ सिन्धु-पार अफ़ग़ानिस्तान के व्रात्य लोग
- ↑ संभवतः मध्य एशिया के समीप कारापथ
- ↑ समुद्र निष्कुटे जाताः
- ↑ हिंगुल देश के लोग
- ↑ लंग जाति
- ↑ केज मकरान ने निवासी
- ↑ फलज मधु
- ↑ अश्मसारमयभांड
- ↑ कोहिस्तान-काफरिस्तान के निवासी
- ↑ दक्षिणी-पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान में हरह्वैति या अर्गन्दाव देश के निवासी
- ↑ काश्मीर के उत्तर में हिमालयस्थ प्रदेश के निवासी
- ↑ आविक-अजिन
- ↑ शकों की एक शाखा
- ↑ शकों की शाखा-विशेष, जिसे चीनी भाषा में कंकु या कंगु कहा गया है, और जो मध्य एशिया के पश्चिमी भाग सुग्ध-बुखारा के प्रदेश में थे
- ↑ शकों की किसी शाखा-विशेष के लोग
- ↑ शकों की एक शाखा, जिसमें, पुरुष सिर पर मेंढ़े के सींग उष्णीष में लगाते थे, जिनके कुछ मस्तक मथुरा-शिल्प में मिले हैं
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