नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
18. पीवरी तायी–भूम्युपवेश
गोकुल की पूरी गलियाँ गोमयोपलिप्त की गयी हैं। मुझे हँसी आती है; किंतु किया तो मैंने भी यही है। ऐसा उत्साह, इतना आनन्द है कि हम सबका उद्योग कहता है- मानो वह नन्हा व्रजयुवराज आज ही ठुमकता हमारे ही आँगन में आने वाला है। सबने अपने द्वार, आँगन सजाये हैं। मेरे स्वामी कहते थे कि किसी अलक्ष्य-करने पूरा महावन सजा दिया है। तृणों, तरुओं तक पर पुष्पों के रंग-बिरंगे मण्डल प्रकट हो गये हैं। मैंने कल कालिन्दी-पुलिन पर देखा- पूरा पुलिन रेणु कणों के स्वत∶ निर्मित चित्रों से इतना सुसज्ज- कोई कुशल कलाकार भी क्या सजावेगा इस प्रकार। शालिचूर्ण, हरिद्रा, कुंकुमादि से गोकुल की गली-गली में आज कुसुमांकन हुआ है। आज ही तो गोपियों को अपने चित्रांकन की कला को प्रकट करने का अवसर मिला है। तोरण बन्दनवार यहाँ प्रतिदिन बदलते हैं। अब हमारे गोकुल में कोई दिन नहीं होता जब उत्सव न हो। पौष जैसे खरमास में भी पुत्रों की षष्ठी, नाक्षत्रिक उत्सव पड़ते ही रहे हैं और आज तो नीलमणि का- हमारे नन्हें युवराज का भूम्युपवेशन है। मैं रोहिणी जीजी की कला को मान गयी। कितने एकान्त मन से, कैसे सुन्दर कुसुम अंकित किये हैं उन्होंने। इतने चटकदार रंग चुनकर शिशु की मनोवृत्ति समझने का उत्तम परिचय दिया उन्होंने। कन्हाई धरा का कठोर स्पर्श न सह सके और रो पड़े- इस अवसर पर शिशु का रुदन शुभ नहीं होता। वह इन चमकते रंगों के पुष्पों को देखने में लगेगा तो सम्भव है, अपना कष्ट कुछ क्षणों को भूल जाय। महर्षि शाण्डिल्य ने अब गणेश, नवग्रहादि का पूजन समाप्त कर दिया है। अच्छा ही हुआ यह विलम्ब, शीतल धरा कुछ उष्ण हो गयी। अब कृष्णचन्द्र को इसका स्पर्श सुखद लगेगा। देवर नन्दराय अब पृथ्वी-पूजन कर रहे हैं। धरा देवी हैं, इनके भी तो हृदय होगा और उसमें भी तो वात्सल्य होगा? भगवति! हमारा यह श्याम कितना सुकुमार है, यह समझकर आप इसे अंक में धारण करना! महर्षि शाण्डिल्य मुनिगणों के साथ सस्वर पृथ्वी-सूक्त का पाठ कर रहे हैं। सर्वसहा, धैर्यमूर्ति इस कृष्ण को धारण करें। इसके लिए मंगलमयी हों! महर्षि ने अर्घ्य दिया, पूजन किया और अब आज्ञा दी है। मैं अपनी इस देवरानी यशोदा को कैसे समझाऊँ? मेरा हृदय ही कहाँ कम हिचक रहा है। |
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