विषय सूची
गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
100. गीता का अनुबंध चतुष्टय
प्रत्येक ग्रंथ में चार बातें होती हैं- ग्रंथ का विषय, उसका प्रयोजन, उसका अधिकारी और प्रतिपाद्य – प्रतिपादक का संबंध। इन चारों को ‘अनुबंध - चतुष्टय’ नाम से कहा जाता है। गीता का अनुबंध – चतुष्टय इस प्रकार है- 1. विषय- जिनसे जीव का कल्याण हो, वे कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग आदि सब विषय (साधन) गीता में आये हैं। 2. प्रयोजन- जिसको प्राप्त होने पर करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहता, उसकी प्राप्ति कराना अर्थात् जीव का उद्धार करना गीता का प्रयोजन है। 3. अधिकारी- जो अपना कल्याण चाहते हैं, वे सब के सब गीता के अधिकारी हैं। मनुष्य चाहे किसी देश में रहने वाला हो, किसी वेश को धारण करने वाला हो, किसी संप्रदाय को मानने वाला हो, किसी वर्ण आश्रम का हो, किसी अवस्थावाला हो और किसी परिस्थिति में स्थित हो, वह गीता का अधिकारी है। 4. संबंध- गीता के विषय और गीता में परस्पर ‘प्रतिपाद्य’ है और गीताग्रंथ स्वयं ‘प्रतिपादक’ है। जिसको समझाया जाता है, वह विषय ‘प्रतिपाद्य’ कहलाता है और जो समझाने वाला होता है, वह ‘प्रतिपादक’ कहलाता है। जीव का कल्याण कैसे हो- यह गीता का प्रतिपाद्य विषय है और कल्याण की युक्तियाँ बताने वाली होने से गीता स्वयं प्रतिपादक है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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