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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
99. गीता में ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति की अलिंगता
सामान्य दृष्टि से तो यही दीखता है कि ईश्वर और जीवात्मा पुरुषरूप से है तथा प्रकृति स्त्रीरूप से है; परंतु वास्तव में ‘ईश्वर’, ईश्वर का अंश ‘जीवात्मा’ और ईश्वर की शक्ति ‘प्रकृति’- ये तीनों ही अलिंग हैं अर्थात् पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग- इन तीनों लिंगों से रहित हैं। अतः इन तीनों को न पुरुषरूप से कह सकते हैं न स्त्रीरूप से कह सकते हैं और न नपुंसक रूप से कह सकते हैं। पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग- इन तीनों लिंगों का भेद तो स्थावर जंगम प्राणियों के शरीरों को लेकर ही है, जिससे उन प्राणियों में ‘यह पुरुष जाति है, यह स्त्री जाति है, यह नपुंसक जाति है’- इस तरह व्यवहार होता है। परंतु ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति- ये तीनों ही लिंगातीत विलक्षण तत्त्व हैं। अतः गीता में इन तीनों के लिए पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग- इन तीनों ही लिंगों का प्रयोग हुआ है; जैसे- ईश्वर के लिएपुल्लिंग शब्दों का प्रयोग- ‘पिता, पितामहः’,[1]; ‘भर्ता, प्रभुः’[2]; ‘पुरुषः’[3]; ‘आदिदेवः, पुरुषः’[4]; ‘ईश्वरः’[5]; ‘पुरुषोत्तमः’[6]; आदि। स्त्रीलिंग शब्दों का प्रयोग- ‘अनुत्तमां गतिम्’[7]; ‘माता’[8]; ‘गतिः’[9]; विभूति रूप से ‘कीर्तिः, श्रीः, वाक्, स्मृतिः, मेधा, धृतिः, क्षमा’[10] आदि। नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग- ‘ब्रह्मणि’[11]; ‘बीजम्’[12]; ‘शरणम्, स्थानम्, बीजम्, अव्ययम्’[13]; ‘ब्रह्म, धर्म पवित्रम्’[14]; ‘अक्षरम्’ [15]; आदि। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (9।17)
- ↑ (9।18)
- ↑ (11।18)
- ↑ (11।38)
- ↑ (15।17)
- ↑ (15।18)
- ↑ (7।18)
- ↑ (9।17)
- ↑ (9।18)
- ↑ (10।34)
- ↑ (5।10)
- ↑ (7।10)
- ↑ (9।18)
- ↑ (10।12)
- ↑ (11।18)
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