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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 8-9
मूल बात यह है कि प्राचीन भारतीय भूगोल वेत्ताओं ने पृथ्वी के भूगोल की दो प्रकार से व्याख्या की थी। एक तो चतुर्द्वीपी भूगोल और दूसरे को सप्त द्वीपी भूगोल कहते हैं। चतुर्द्वीपी भूगोल की व्याख्या पुरानी थी, जो कि सम्भवतः वैदिक युग से चली आती थी। यह व्याख्या स्पष्ट, सरल और संक्षिप्त थी। जब आवागमन और व्यापार के कारण भारतीय जनता का परिचय मध्य एशिया के उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी देशों से बहुत अधिक बढ़ गया तो एक नए प्रकार से वर्ष और पर्वतों का क्रम बैठाया गया। इसके अन्तर्गत सात द्वीप, सात पर्वत और सात समुद्रों की कल्पना की गई। अकेले जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भी सात वर्ष मान लिये गये, जिनका स्पष्ट वर्णन हम आगे करेंगे। यदि पौराणिक लेखक चतुर्द्वीपी और सप्तद्वीपी भूगोल के वर्णनों को अलग-अलग रखते तो कोई उलझन न थी; किन्तु प्रायः सब पुराणों में और भीष्म पर्व में भी पुराने और नये दोनों वर्णनों का जोड़ लगाने के फेर में आपस में घोटाला हो गया। चतुद्वीपी भूगोल में पृथ्वी की उपमा चार पंखड़ियों वाले कमल से दी गई है (चतुष्पत्रं पार्थिव पद्यम्)। इसे भीष्म पर्व में चक्र संस्थान कहा गया है। इसका ठाठ इस प्रकार था- यह समस्त पृथ्वी एक परिमंडल के समान है।[1] इसके मध्य में मेरु पर्वत है। इस चक्र संस्थान की एक चार फांकें की जायं तो मेरु के चार पार्श्वों में चार द्वीप फैले हुए हैं- 1. पूर्व में भद्राश्व, 2. पश्चिम में केतुमाल, 3. दक्षिण में जम्बूद्वीप और 4. उत्तर में उत्तर कुरु।[2] इनमें से प्रत्येक द्वीप के पर्वत, नदी, सरोवर एवं वन आदि के नाम अन्य पुराणों में मिलते हैं। जैसे - जम्बूद्वीप या भारतवर्ष में हिमवान पर्वत, अलकनन्दा नदी, नन्दन वन, मानस सर एवं भगवान का कच्छप रूप में अवतार हुआ है। पूर्व के केतुमाल वर्ष में ऋषभ, और पारियात्र पर्वत, स्वरक्षु नदी (वर्तमान वंक्षु या आक्सस नदी), वैभ्राज वन, शीतोद सर और वराह अवतार हुआ है। उत्तर कुरु में श्रृंगवान् और जारुधि पर्वत, महाभद्र सर और मत्स्य अवतार हुआ है। पूर्व के भद्राश्व द्वीप में देवकूट (चीनी थिएनशन) और जठर पर्वत, सीता नदी, चौत्ररथ वन, वरुनोद सर और हयग्रीव का अवतार हुआ है। पर भीष्म पर्व के लेखक ने इस प्रकार के ब्यौरे का संग्रह छोड़ दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1. परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः।-(6। 12)
- ↑ 2. तस्य पार्श्व त्विमे द्वीपाश्चत्वारः संस्थिताः प्रभो। भ्रदाश्वः केतुमालश्च जम्बूद्वीपश्च भारत।। उत्तराश्चैव कुरवः कृतपुण्य प्रतिश्रयाः।।-(7। 11)
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