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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
5. उद्योग पर्व
अध्याय : 128-141
वहाँ से कृष्ण कुन्ती के घर गये और सभा का सब हाल सुनाया। कुन्ती ने सुनकर कुछ व्यंग से कहा, “हे केशव, धर्मात्मा युधिष्ठिर से कहना कि कोई ऐसा काम न करे कि धर्म का लोप हो जाय। उसकी बुद्धि केवल धर्म को देखती है, पर धर्म को भी तो ठीक तरह से समझना चाहिए। ब्रह्मा ने क्षत्रिय को इसलिए बनाया है कि अपने बाहुबल से जियें और प्रजा का पालन करें।” मैंने बड़े-बूढ़ों से सुना था कि कुबेर ने प्रसन्न होकर राजा मुचुकुन्द को यह पृथ्वी देनी चाही, पर मुचकुन्द ने कहा, “जो मैं अपने भुजबल से अर्जित करूंगा वही भोगूंगा। और उसने अपने बाहु-वीर्य से प्राप्त राज्य ही भोगा। यही क्षत्रिय धर्म है। दंडनीति ही राजा का सुधर्म है। राजा द्वारा दंडनीति का पालन, यही सतयुग है। काल राजा को बनाता है, या राजा काल को, इसमें कभी संदेह मत करना। राजा ही काल का कारण है।[1] राजा के दोष से जगत और जगत की त्रुटियों से राजा प्रभावित होता है। तुम जो सोचते हो, वह राजर्षियों का आचार नहीं। तुम्हारी जैसी बुद्धि हो रही है, वैसी तुम्हारे बाप-दादों की कभी नहीं थी। पितर पुत्रों से आशा लगाते हैं। तुम क्षत्रिय हो। अपने बाहु-वीर्य से जीवन बिताओ और पिता के डूबे हुए राज्य का उद्धार करो। इससे अधिक क्या दुःख होगा कि मैं दूसरों के टुकड़ों पर निर्भर रहूं?” यहाँ कुन्ती ने विदुला का इतिहास सुनाया, “वह क्षात्र धर्म के आदर्श को मानती थी। उसके पुत्र को सिन्ध देश के राजा ने हरा दिया था। तब दीनचित्त उस पुत्र को विदुला ने राजसभा में क्षात्र धर्म का उपदेश दिया, “अरे, न मैंने, न तुम्हारे पिता ने तुम्हें जन्म दिया। कहाँ से तुम आ गये? अपने को छोटा मत समझो। जीवन में निराश मत बनो। उत्थान के लिए राज्य का भार सम्भालो। मुहूर्त भर धधकना अच्छा, देर तक धुंधु आना अच्छा नहीं।” इस प्रकार अनेक प्रकार से विदुला ने अपने पुत्र को उत्साह, पुरुषार्थ, उद्यम का दृष्टिकोण समझाया। तत्पश्चात उसके पुत्र ने माता के अनुशासन का पालन किया और विजयी हुआ।[2] इस दर्शन का सम्बन्ध विशेषतः क्षात्र धर्म एवं प्रज्ञावादी दर्शन के साथ था। पराक्रम ही वास्तविक जीवन है। इस तथ्य के सूचक अनेक विशेषण उस उपाख्यान के अन्त में आये हैं, जहाँ इस तेजोवर्धन दृष्टिकोण का पालन करने वाले व्यक्ति को विद्याशूर, तपःशूर, दमशूर, बलयुक्त महाभाग, अपराजित, गोप्ता, सत्यपराक्रम, ब्रह्मतेज से दीप्तिमान और किसी के धर्षण को न मानने वाला कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कालो वा कारण राज्ञो राजा वा कालकारणम्।
इति ते संशयो मा भूद् राजा कालस्य कारणम्।। (130।15) - ↑ अ. 131-134
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