विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
5. उद्योग पर्व
अध्याय : 128-141
माता के इन वचनों का दुर्योधन पर कुछ प्रभाव न हुआ। वह क्रोध में भरा हुआ मंत्रणा के लिए फिर अपने साथियों के पास लौट गया। वहाँ शकुनि, कर्ण और दुःशासन ने दुर्योधन से मंत्रणा की, “अरे, यह कृष्ण हमें पकड़ने की सलाह दे रहा था। इसके पहले कि वह ऐसा करे, क्यों न हम ही उसे बान्ध लें? उसे पकड़ा हुआ सुनकर पाण्डव टूटे दांत वाले सांप की तरह छटपटाने लगेंगे। धृतराष्ट्र कितना भी चिल्लावें, बस हम कृष्ण को बान्धकर शत्रुओं को समझ लेंगे।” यह बात झटपट सात्यकि ने समझ ली और बाहर आकर कृतवर्मा से कहा, “तुम सेना की टुकड़ी सजाकर कृष्ण, धृतराष्ट्र और विदुर से जाकर यह हाल कहो। सभाद्वार पर प्रतीक्षा करो, मैं तब तक कृष्ण को सूचना देता हूँ।” उसने कृष्ण, धृतराष्ट्र और विदुर से कहा, “हे राजन! आपके पुत्र मृत्यु के मुख में आकर बलपूर्वक कृष्ण को पकड़ना चाहते हैं। वे आग में पतिंगों की भाँति कहीं के न रहेंगे।” विदुर की बात सुनकर कृष्ण ने कहा, “हे राजन, यदि ये लोग ऐसे निन्दित कर्म पर उतारू होंगे तो इससे युधिष्ठिर का काम ही बनेगा। मैं ही इन सबको बान्धकर पाण्डवों को सौंप दूंगा। पर ऐसा निन्दित काम मैं करना नहीं चाहता। दुर्योधन की इच्छा पूरी हो।” यह सुनकर धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा कि फिर दुर्योधन को यहाँ ले आओ, जिससे मैं उसे और उसके साथियों को समझा सकूं।” विदुर ने वैसा ही किया और धृतराष्ट्र दुर्योधन को समझाने लगे। यह समझाना क्या था, कृष्ण के बल का बखान करना था। यहीं पर बारह श्लोकों में विदुर ने भी कृष्ण के अनेक पराक्रमों और बाललीलाओं का वर्णन किया है, जो भागवतों द्वारा लगाया हुआ छोटा-सा साफ-सुथरा पैबन्द है। चालीसवें श्लोक के “इत्युक्ते-धृतराष्ट्रेण” का सटीक अन्वय और 129 अध्याय के पहले श्लोक से जा मिलता है। अब समय आ गया था कि कृष्ण भी दो टूक बात कहते। उन्होंने कहा, ”हे दुर्बुद्धि! क्या तुमने मुझे अकेला समझकर पकड़ लेना चाहते हो? यहाँ ही सब अन्धक, वृष्णियों को देखो। वसु, रुद्र और आदित्य आदि देव भी यही मेरे इस विराट रूप में हैं।” यह कहकर कृष्ण अट्टहास करके हंसे। इसके बाद बारह श्लोकों में भागवत दृष्टि से अन्य अनेक देवताओं का उल्लेख करते हुए कृष्ण के विराट रूप का उपबृंहण किया है।[1] तब सात्यकि का हाथ पकड़कर कृष्ण सभा से चले गये। धृतराष्ट्र ने कृष्ण के जाते-जाते कहा, “हे कृष्ण, मेरा अपने पुत्रों पर जो प्रभाव है, वह आपने देख लिया। अब इस सारी स्थिति से परिचित होकर मुझ पर संदेह मत करियेगा।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 129।4-16
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