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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 37
फिर विदुर से स्वयंभुव मनु का प्रमाण देते हुए सत्रह तरह के भकुओं की सूची दी है। जो अकल का दुश्मन हो, वही भकुआ है। वह मानो मुट्ठी से आकाश कूटता है, हाथ में फन्दा लेकर हवा को बान्धना चाहता है, या आकाश के इन्द्रधनुष को झुकाना चाहता है, या सूर्य की किरणों को मोड़ कर लपेटना चाहता है। जो अशिष्य को सिखाता है, जो क्रोध करता है, जो बलहीन होकर बलवान से वैर साधता है, जो स्त्रियों की रक्षा नहीं करता, जो दूसरों के क्षेत्र में बीज बोता है, जो उधार लेकर कह देता है कि याद नहीं पड़ता, जो देकर डींग हांकता है, जो ससुर होकर पतोहू के साथ हंसी करता है, जो स्त्री के मुंह लगता है, जो श्रद्धाहीन के सामने ज्ञान बघारता है, ऐसे व्यक्ति परले सिरे के मूर्ख हैं। यह सूची लोक के व्यवहारों को छानकर तैयार की गई थी और प्रज्ञा-दर्शन का अंग थी। धृतराष्ट्र ने बात को मोड़ते हुए शतायु बनने की युक्ति पूछी। विदुर ने मन और शरीर दोनों दृष्टियों से इसका उत्तर देते हुए कहा, “अतिवाद, अतिमान, मित्रद्रोह, क्रोध, अत्याग और हद से ज्यादा ज्ञान-लिप्सा- ये छः बातें आयु कम करती हैं। इनसे आयु छिन्न होती है, मृत्यु से नहीं। परिमित भोजी आरोग्य, आयु एवं सुख और बल प्राप्त करता है।” कई प्रकार से विदुर ने प्रश्न का समाधान किया और अन्त में सब बलों के ऊपर प्रज्ञाबल की प्रशंसा की। बाहुबल, अमात्यबल, धनबल, आभिजात्यबल एवं प्रज्ञाबल, इन पांचों में प्रज्ञा से जो कार्य सिद्ध होता है, वह अन्य किसी बल से नहीं। प्रज्ञा के बाण से यदि शत्रु को छेद दिया जाय तो न उसके वैद्य मिलते हैं, न औषधि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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