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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 33-34
इस कथन से सूचित किया गया है कि प्रज्ञावादी दर्शन जीवन के सब व्यवहारों को चलाने के लिए और विशेषतः राजधर्म के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। वह जीवनोपयोगी सब दर्शनों में सिरमौर था। “हे राजन, इस विश्व का कर्त्ता एक अद्वितीय ब्रह्म है, जिसे तुम नहीं जानते। जैसे समुद्र पार करने के लिए नाव उपयोगी है, वैसे ही अकेला सत्य स्वर्ग तक पहुँचने की सीढ़ी है। जैसे सांप बिलशायी चूहे को खा लेता है, वैसे ही जो राजा दिग्विजय के लिए नहीं उठता और जो ब्राह्मण अपने पाण्डित्य के प्रकाश के लिए देश यात्रा नहीं करता, उन दोनों को यह भूमि ग्रस लेती है। दो नुकीले कांटे शरीर को सुखाने वाले हैं, एक निर्धन की कामना और दूसरे असमर्थ का कोप। हे राजन, मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं, उत्तम, मध्यम, और अधम। उन्हें उनके योग्य कामों में लगाना चाहिए। अल्प बुद्धि, दीर्घसूत्री, आलसी और चापलूसों के साथ परामर्श करना पण्डित को उचित नहीं। बड़ा-बूढ़ा सम्बन्धी, टोटे में पड़ा हुआ कुलीन, दरिद्री मित्र, निःसन्तान बहन, इन चारों का प्रतिपालन उत्तम गृहस्थ का कर्त्तव्य है। बृहस्पति ने इन्द्र से कहा था कि चार बातें तुरन्त फल दिखाती हैं- देवताओं का संकल्प, प्रज्ञाशील की युक्ति, विद्वान की साधना और पाप कर्मों का क्षय। मनुष्य को उचित है कि पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु इस पंचाग्नि की नित्य सेवा करे। पांच इन्द्रियों में से यदि एक भी छिद्र युक्त हो तो उसी रास्ते मनुष्य की प्रज्ञा नष्ट हो जाती है, जैसे नीचे के एक छेद से मशक का सारा पानी बह जाता है। निन्द्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य, और काम को लम्बा टालने की प्रवृत्ति, इन छः दोषों को छोड़ने में ही भलाई है। सत्य, दान, अनालस्य, अनसूया, क्षमा और धृति, इन छः गुणों को रखना ही अच्छा है। ये आठ बातें आनन्द का मथा हुआ मक्खन हैं- मित्रों का समाज, महान धन-प्राप्ति, पुत्र का सुख, स्त्री का सुख, समय पर मीठी बातें, अपने वर्ग में सम्मिलन, इष्ट वस्तु की प्राप्ति और लोक में सम्मान। जिस घर में नौ द्वार हैं, तीन खम्भे हैं, पांच सूचना लाने वाले साक्षी या सेवक हैं और जिसमें क्षेत्रज्ञ आत्मा स्वयं बैठा है, ऐसे इस शरीर रूपी गृह को जो ठीक प्रकार से जानता है, वही परम बुद्धिमान है।” प्रज्ञादर्शन में समाज और निजी जीवन, दोनों का समान महत्त्व था, क्योंकि दोनों को सफलता से चलाने के लिए प्रज्ञा या समझदारी की आवश्यकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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