विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
4. विराट पर्व
अध्याय : 37-45
42. गोग्रहण
भीष्म की बात सुनकर दुर्योधन ने सोचा कि कहीं धर्म का पल्ला पकड़ा तो आज तक के किये-धरे में अड़ंगा लग जायेगा। उसने चट से कहा, ‘‘हे पितामह, मैं पाण्डवों को राज्य कभी न दूंगा, जो नीति युद्ध की ओर चले, वहीं शीघ्र कीजिए।’’ उसका यह देखकर भीष्म ने अपनी सैनिक बुद्धि की तत्परता दिखलाते हुए कहा, ‘‘सेना के चार भाग करो। एक के साथ दुर्योधन हस्तिनापुर लौटे। दूसरा भाग गोधन को साथ लेकर जाय। आधी सेना से हम सब अर्जुन, विराट या इन्द्र भी आ जाए, तो उससे लड़ेंगे।’’ आचार्य बीच में अश्वत्थामा बाईं ओर, कृप दाहिनी ओर, आगे कर्ण सुसज्जित हों। मैं सेना के पीछे रहकर उसकी रक्षा करूंगा। यों कौरवी सेना को सामने देख अर्जुन अपने रथ को गुंजाता हुआ उनकी ओर बढ़ा। द्रोण ने स्थिति समझकर कहा, ‘‘वह महाराथी अर्जुन गाण्डीव के साथ आया है। उसी के चलाये दो बाण मेरे पैरों में आकर गिरे हैं और दो कानों को छूत निकल गये हैं। वनवास से लौटकर वह मुझे प्रणाम कर रहा है और युद्ध के लिए आज्ञा चाहता है।’’ तब अर्जुन ने आगे बढ़कर सेना पर दृष्टि डाली और व्यूह बनाये हुए पांचों सेनापतियों को ताड़ लिया और सोचा, यहाँ द्रोण, अश्वत्थामा, कर्ण, कृप और भीष्म तो हैं, पर दुर्योधन दिखाई नहीं पड़ता। ज्ञात होता कि वह गायों के साथ अपनी जान लेकर भागा जा रहा है। यह सोचकर दुर्योधन की दिशा में ही अपना रथ बढ़ाया। द्रोण ने स्थिति समझ ली कि दुर्योधन को रोके बिना यह न रुकेगा। दुर्योधन अकेला इससे जूझ जायगा फिर हम गाय या धन लेकर क्या करेंगे? इसलिए इसका पृष्ठ भाग चांपते हुए हमें भी बढ़ना चाहिए। इस अवसर पर अर्जुन ने शंखध्वनि की, जिसे सुनकर गांए रम्भाती हुईं मत्स्य की ओर लौट पड़ीं। इसी बीच में कुरु सेना ने उस पर हमला कर दिया। दोनों दलों में घोर युद्ध हुआ और अर्जुन की मार के सामने कर्ण, कृप, द्रोण, अश्वत्थामा, दुःशासन आदि सब महारथी क्रमशः पलायन कर गये। अपने दल को छितराया हुआ देखकर भीष्म भी युद्ध में उतर पड़े, किन्तु उन्हें भी विमुख होना पड़ा। जब सब कौरव योद्धा शांत हो गये तब अर्जुन ने उत्तरा की बात का स्मरण करके विराट-पुत्र से कहा ‘‘हे उत्तर, कृपाचार्य के शुक्ल, कर्ण के पीले, अश्वत्थामा के नीले वस्त्रों को बटोर लाओ।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज