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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 178
आगे चलकर शान्ति पर्व[1] में भी एक नागराज के संवाद का उल्लेख है। वह जिस आजगर-व्रत का व्याख्यान करता है वह शंखपाल जातक के नागराज उपदेश से मिलता हुआ है। हमारा अनुमान है कि पंचरात्र भागवतों द्वारा नहुष-चरित्र का यह प्रकरण महाभारत में जोड़ा गया। प्रथम तो आरण्यक-पर्व में ही आगे चलकर कहा गया है कि नहुष और उसका पुत्र ययाति दोनों ने ही वैष्णव-यज्ञ नामक महाक्रतु सम्पादित करके स्वर्ग प्राप्त किया था।[2] दूसरे, सत्य, दान, दम, और, अहिंसा, ये वैष्णव-भागवतों ने धार्मिक अभ्युत्थान के प्रमुख द्वार माने जाते थे। बेसनगर के गरुड़ध्वज वाले लेख में भी सत्य, त्याग, दम, इन तीन अमृत पदों का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त आचार के आधार पर ब्राह्मणत्व की नई परिभाषा और आचारवान शूद्रों को भी ब्राह्मणों के समान प्रतिष्ठित मानने की प्रवृत्ति-यह भी भागवतों की विशेषता थी। इस नए दृष्टिकोण की पूर्णतम अभिव्यक्ति भागवत के उस श्लोक में पाई जाती है, जिसमें कहा गया है कि किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुक्कस, खश, बर्बर, यवन एवं इनके अतिरिक्त अन्य नीच समझी जाने वाली जातियाँ विष्णु भगवान की शरण में आने से शुद्ध हो जाती हैं। शक-यवनों के यहाँ आने के बाद मथुरा से जिस भागवत धर्म का स्वर ऊँचा उठा, उसमें इस तथ्य की स्वीकृति तत्कालीन धार्मिक आन्दोलन की विशेषता थी। शक-महाक्षत्रप शोडाश और कुषाण-सम्राट वासुदेव दोनों के समय में भागवत आन्दोनल, अत्यधिक उन्नति को प्राप्त हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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