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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 50-78
शुभ तिथि-मुहूर्त में राजा भीम ने स्वयंवर रचाया। सुनहले खम्भों पर बने हुए तोरणों से युक्त उस महारंग में बिछे हुए आसनों पर राजा बैठ गए। दमयन्ती भी रंगभूमि में आई। जब राजाओं के नामों का कीर्तन होने लगा। तब दमयन्ती ने एक-सी आकृति वाले पाँच पुरुषों को बैठे देखा। वह न समझ सकी की नल कौन है। उसने सोचा, बड़े-बूढ़ों से देवताओं के जो चिह्न सुने हैं, वे तो इन में से एक में भी नहीं हैं। ये सभी पृथ्वी पर बैठे हैं। वह जब निश्चय न कर सकी तो उसने मन-ही-मन देवों को प्रणाम कर कहा, ‘‘हंसों का वचन सुनकर यदि नल को मैं अपना पति मान चुकी होऊं तो उस सत्य के बल से देवता ही मुझे बतायें कि नल कौन-सा है। वे लोकपाल अपना रूप प्रकट करें, जिससे मैं नल को पहचान लूं।’’ उसके मन की विशुद्धि, बुद्धिमत्ता, भक्ति और प्रेम देखकर देवों ने अपने चिह्न प्रकट कर दिये। दमयन्ती ने देवों को देखा। उनके शरीर पर श्वेद न था। उनके नेत्र एकटक थे। उनकी मालाओं के फूल खिले हुए थे और वे पृथ्वी से कुछ अंगुल ऊपर बैठे थे। वह तुरन्त नल को पहचान गई। उसके शरीर की छाया पड़ती थी। उसकी माला के फूल कुछ कम्हला गए थे। उसके शरीर पर धूल और पसीना था। वह पलक झपका रहा था और धरती को छूकर बैठा था। उसने लजाते हुए नल का पल्ला पकड़ लिया और उसके गले में जयमाला डाल दी। राजा ‘हा-हा’, करने लगे, किन्तु देवता और महर्षियों ने ‘साधु-साधु’ कहा। लोकपालों ने प्रसन्न होकर नल को आठ वर दिये। इन्द्र ने कहा, ‘तुम्हारे यज्ञ में मैं प्रत्यक्ष दर्शन दूंगा और तुम्हें शुभ गति मिलेगी।’ अग्नि ने कहा, ‘तुम जहाँ चाहोगे मुझे उत्पन्न कर सकोगे और तुम मेरे ज्योतिष्मान लोकों को प्राप्त करोगे।’ यम ने कहा, ‘धर्म में तुम्हारी स्थिति होगी और तुम्हारे अपने हाथ से बनाये हुए अन्न में रसायन का स्वाद प्राप्त होगा।’ वरुण ने कहा, ‘तुम जहाँ चाहोगे जल उत्पन्न कर लोगे। मैं यह उत्तम गंधवती फूलमाला तुम्हें देता हूँ।’ आठों ने मिलकर उसे सन्तान का वर दिया। इस प्रकार नल ने दमयन्ती को प्राप्त किया और उसके साथ सुख-भोग करने लगा। जब स्वयंवर से लोकपाल लौट रहे थे, तब उन्हें मार्ग में द्वापर और कलि मिले। इन्द्र के यह पूछने पर कि वह कहाँ जा रहे हैं, कलि ने कहा कि दमयन्ती के स्वयंवर मे जाकर उसे वरूंगा। इस पर इन्द्र ने बताया कि स्वयंवर तो हो गया और हमारे रहते दमयन्ती ने नल को पति चुन लिया। इतना सुनना था कि कलि ने भभककर कहा, ‘‘देवों के बीच में मनुष्य को उसने अपना पति चुना! इसका दण्ड मैं उसे दूंगा।’’ देवताओं ने समझाया कि हमारी सहमति से दमयन्ती ने ऐसा किया है। उस धर्मात्मा को यदि तुम दुःख दोगे तो तुम्हीं दोष के भागी बनोगे।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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