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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 50-78
नल ने कहा, “हे कल्याणी, मैं नल हूँ। देवों का दूत होकर यहाँ आया हूँ। देवता तुम्हें चाहते हैं। इन्द्र, अग्नि, वरुण, यम इनमें से किसी एक को अपना पति चुनो। उन्हीं के प्रभाव से मैं यहाँ तक आ गया, किसी ने देखा नहीं।” यह सुनकर दमयन्ती ने देवताओं को तो प्रणाम किया और नल से बोली, “हे राजन! मेरे ऊपर अनुग्रह करो। मैं, और जो मेरा धन है, सब तुम्हारा है। हंसों ने जो बात मुझसे कही थी, उसी से मैं संतप्त हूँ। तुम्हारे लिए ही मैंने राजाओं को एकत्र किया है। यदि मुझे स्वीकार न करोगे तो विष, अग्नि, जल या रस्सी से प्राण-त्याग कर दूंगी।” नल ने उत्तर दिया‚ लोकपालों के होते हुए मनुष्यों को तुम क्यों चाहती हो। मैं तो उनके पैरों की धूलि भी नहीं हूँ। देवताओं के विपरीत व्यवहार करने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। तुम मेरी रक्षा करो और देवताओं को वरो।’’ दमयन्ती ने नल की यह गद्गद् वाणी सुनी और बोली, ‘‘मैं उपाय बताती हूँ, जिससे तुम्हें कुछ हानि या दोष न होगा। तुम और चारों लोकपाल स्वयंवर में आओ। वहाँ देवताओं के सामने ही मैं तुम्हें वर लूंगी।’’ यह सुनकर नल देवों के पास लौट आया और सब हाल बताकर बोला, ‘‘मैंने आप सबका वर्णन उससे किया, किन्तु उसने कहा कि मैं तुम्हें चाहती हूँ। देवता और तुम स्वयंवर में आओ। वहीं लोकपालों के सामने तुम्हें वरूंगी। तब तुम्हें दोष न होगा। यही सच्ची घटना है। आगे आप जैसा चाहें करें।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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