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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 50-78
उस दिन से दमयन्ती नल के लिए अस्वस्थ रहने लगी। सखियों ने भीम से सब हाल बताया। राजा ने आकर देखा और समझ लिया कि इसका स्वयंवर करना चाहिए। उन्होंने सब राजाओं को स्वयंवर का समाचार भेज दिया। उसे सुनकर अनेक राजा स्वयंवर के लिए आये। उसी समय नारद और पर्वत नाम के ऋषि घूमते हुए स्वर्गलोक में आये। नारद ने इन्द्र को दमयन्ती के स्वयंवर का समाचार कहा। उसी समय अग्नि, यम और वरुण ये लोकपाल भी वहाँ आ गए। नारद के वचन सुनकर सबने कहा, “हम भी उस स्वयंवर में चलेंगे।” यह कह वे सब विदर्भ की ओर चले। इधर नल भी स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए चला। देवता मार्ग में नल को साक्षात कामदेव के समान देखकर ठक रह गए। उन्होंने आकर कहा, ‘हे नैषध, तुम बड़े सत्यव्रती हो। हमारी सहायता करो और हमारी ओर से दूत बनकर जाओ।’ नल ने कहा, अच्छा करूंगा’, और पूछा, ‘आप कौन हैं, और वह कौन है, जिसके पास मुझे दूत बनकर जाना है और मुझे वहाँ क्या काम करना है?’ यह सुनकर इन्द्र ने कहा, “हम देवता हैं, दमयन्ती के लिए आये हैं। मैं इन्द्र हूं, यह अग्नि हैं, यह वरुण हैं और यह यम है। तुम दमयन्ती के पास जाकर कहो कि वह हममें से किसी एक को अपना पति चुन ले।” यह सुनते ही नल सन्नाटे में आ गया और बोला, “मैं भी उसी काम से आया हूँ। मुझे वहाँ न भेजिए।” देवताओं ने घुड़ककर कहा, “तुम्हारा काम करूंगा, यह तुम कह चुके हो। फिर कैसे न करोगे? जल्दी जाओ, देर मत करो।” लाचार नल ने फिर कहा, “उसके महलों में बड़ा पहरा है। मैं कैसे वहाँ जा पाऊंगा?” इन्द्र ने भरोसा दिया कि तुम जा सकोगे। ‘अच्छा जाता हूं’ कहकर नल दमयन्ती के महल में पहुँचा और वहाँ सखियों के बीच में अत्यन्त रूपवती दमयन्ती को देखते ही उसके हृदय में कामाग्नि जल उठी। पर वह सच्चा था। उसने अपने काम-भाव को रोक लिया। नल को देखकर उन स्त्रियों में खलबली मच गई। सब उसके रूप से मोहित हो गई। दमयन्ती ने हंसते हुए उससे पूछा, ‘तुम कौन हो और यहाँ तक कैसे चले आये?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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