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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 43-51
“मेरु और मंदराचल के बीच में[1] जो शैलोदा नदी है,[2] उनके दोनों किनारों पर कीचक संज्ञक बांस के वन हैं[3], वहाँ अनेक जातियों के लोग निवास करते हैं, जैसे खश, एकाशन, जोह, प्रदर, पशुक, कुणिन्द, तंगण, परतंगण आदि। वे लोग पिपीलिक नाम रवेदार सोना द्रोण से नापकर ले आये। इस सोने की चीटियां खोदकर मानो वरदन में मुफ्त उन्हें देती थीं।[4] हिमवान पर्वत के निवासी राजा काले और श्वेत चंवर, हिमालय के फूलों से उत्पन्न स्वादिष्ट मधु कैलास के उत्तर की वन्य औषधियां और उत्तर कुरु[5] की बनी हुई पानी की भाँति हरियाले यशब के दानों की मालाएं[6] उपहार में लेकर प्रणाम करने के लिए उपस्थित हुए। “हिमवान के पूरब में उदयाचल पर्वत के राजा एवं समुद्र के किनारे वारिषेण[7] एवं लौहित्य नदी के दोनों किनारों पर रहने वाले गण तथा फल-मूल खाने वाले किरात, जो चमड़े से अपना शरीर ढकते हैं, बड़ी अद्भुत भेंट की सामग्री लेकर आये। चंदन, अगरु और कालियक के मुट्ठे, बढ़िया चर्म, सुवर्ण और गन्ध, भाँति-भाँति के मृग और पक्षी एवं किराती दासियां युधिष्ठिर की स्वीकृति के लिए उपायन में लाई गईं। उस अजातशत्रु राजा के लिए जिन-जिन जनपदेश्वरों ने बलि आहरण किया, उनके नामों का मैं कहाँ तक वर्णन करूं? कायव्य[8], दरद[9], दार्व (डुग्गर, वर्तमान जम्मू प्रदेश), शूर[10] वैयमक,[11] पारद‚ बाह्लीक (बल्ख), कुन्दमान [12], पौरक[13], हंसकायन[14], काश्मीर, औदुम्बर, शिबि,[15] त्रिगर्त, यौधेय, राजन्य,[16], मद्र[17], केकय[18], अम्बष्ठ[19], कौकुर,[20] पह्लव, वसाति,[21] मौलेय,[22] क्षुद्रक, मालव, शक, अंग, बंग, पुण्ड्र, कलिंग, ताम्रलिप्ति, शाणवत्य (संथाल) और गया के आस पास के रहने वाले- इस प्रकार अनेक क्षत्रिय जब द्वार पर उपस्थित हुए, तब द्वारपालों ने राजा की आज्ञा से निवेदन किया, ‘आप लोग कर और उपहार लेकर आये हों तो द्वार पर आइएगा।’ “पूर्व में काम्यकसर (उड़ीसा के चिल्काझील) के समीप रहने वाला राजा सोने के साज और जड़ाऊ झूलों से अलंकृत क्षमावान, कुलीन और पर्वतुल्य हाथी देवर, भीतर प्रवेश पा सका। उड़ीसा की शूकर जाति और वही के पांशु-राष्ट्र[23] के राजाओं ने भी हाथी और घोड़े भेंट में देकर प्रणाम किया। सिंहल के नृपति समुद्र का सारभूत धन, शंख, मुक्ता और वैदूर्य के रूप में लेकर सैकड़ों कालीनों के साथ उपस्थित हुए। उनके सांवले शरीर पर मोतियों के बने हुए मणि-चीर-वस्त्र सुशोभित थे और उनके नेत्रों के अपांग-भाग तांबे से दमकते थे। नाना देश और नाना जातियों के उच्च-नीच वर्णों के मनुष्य और म्लेच्छ देश के निवासी मनुष्य युधिष्ठिर के लिए जो उपहार-सामग्री लाये, उसका स्मरण करके आज मुझे मर जाने की इच्छा होती है। उस राज-भवन में पक्वान और सीधा जिस प्रकार ब्राह्मणों, स्नातकों, यतियों और भृत्यों में बंटता था, उसका कोई अन्त नहीं। कुब्ज और वामन सदृश छोटे-छोटे नौकरों तक को खिलाकर ही याज्ञसेनी द्रौपदी स्वयं भोजन करती थी। केवल दो ने ही युधिष्ठिर को कर नहीं दिया-एक तो विवाह-सम्बन्ध के कारण पंचाल क्षत्रियों ने और दूसरे सखा होने के नाते अन्धकवृष्णियों ने। उस राजसूय यज्ञ की श्री पाकर युधिष्ठिर हरिश्चंद्र के समान सुशोभित हो गए। ऐसी दशा में मेरा कृश, सशोक और विवर्ण होना स्वाभाविक है। मुझे चैन कहां? क्या तुम समझते हो, मेरे प्राण बचेंगे? तुमने किसी अन्धे सारथी की तरह उल्टा जुआ बान्ध दिया है। जो छोटे हैं, वे बढ़ रहे हैं, और जो बड़े हैं, वे छीज रहे हैं।”[24] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्य एशिया में पामीर के समीप
- ↑ वर्तमान खोतन नदी, जहाँ यशब की खानें हैं
- ↑ कीचक चीनी भाषा का शब्द है
- ↑ पिपीलिक सुवर्ण के बारे में इस किंवदंती का उल्लेख युनानियों ने भी किया है, जो प्राचीन व्यापारी जगत में मध्य एशिया और तिब्बती सुवर्ण के विषय में प्रचलित थी
- ↑ मध्य एशिया प्रदेश
- ↑ अम्बुमाल
- ↑ आधुनिक बारीसाल
- ↑ खैबर दर्रे के निवासी
- ↑ काश्मीर के उत्तर-पश्चिम में दर्दिस्तान
- ↑ प्रसिद्ध अफ़ग़ान कबीला
- ↑ अफ़ग़ानी ऐमक कबीला
- ↑ अफ़ग़ानिस्तान की उत्तरी सीमा पर कुन्दुज के निवासी
- ↑ पठानों का पोरे नामक कबीला
- ↑ काश्मीर की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर हुंजा प्रदेश
- ↑ झंगमघियाना के दक्षिण शोरकोट
- ↑ एक प्राचीन जनपद, जिसके सिक्के होशियारपुर जिले में मिले हैं
- ↑ पंजाब का प्रसिद्ध जनपद, जिसकी राजधानी शाकल या स्यालकोट थी
- ↑ शाहपुर, झेलम और गुजरात के जिले
- ↑ पंजाब का एक जनपद
- ↑ संभवतः पंजाब की खोक्खड़ जाति, जो झेलम और चिनाब के बीच में बसी है
- ↑ सीबी
- ↑ मूला नदी के आसपास रहने वाले
- ↑ पांस रियासत
- ↑ इस महत्त्वपूर्ण प्रकरण की भौगोलिक और अर्थिक सामग्री के विषय में जिन्हें अधिक जानने की इच्छा हो वे कृपया श्री मोतीचंद्र कृत 'उपायन पर्व: एक अध्ययन' अंग्रेजी पुस्तक देखें।
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