भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 1
इसके अतिरिक्त भृगुवंशी ऋषियों के कई लम्बे संवाद इस ग्रन्थ में हैं, जैसे भृगु-भरद्वाज-संवाद, च्यवन-कुशिक-संवाद और मार्कण्डेय समास्या। उत्तंक की कथा, च्यवन और इन्द्र के संघर्ष की कथा, भार्गव राम से द्रोण की अस्त्र-प्राप्ति की कथा और कर्ण के शिष्यत्व की कथा दो-दो बार आई है। जमदग्नि और परशुराम की जन्मकथा चार बार आई है। भार्गव राम के द्वारा क्षत्रियों के इक्कीस बार नाश किये जाने का उल्लेख दस बार हुआ है और हर बार ‘त्रिसप्तकृत्वः’ पृथ्वी कुता निःक्षत्रिया पुरा’ यही उसका रूप है, जिसे सूतों ने उनके विरुद्ध गान का अंतरा ही बना लिया था। भार्गव राम के द्वारा क्षत्रियों के गर्व तोड़ने का उल्लेख तो लगभग बीस बार हुआ है। भार्गवों का यह गौरव महाभारत में ही स्फुट हुआ है। उनके यश और वीर्य का आभास वैदिक साहित्य में प्रायः नहीं है। सौ बातों की एक बात यह कि कुलपति शौनक, जिनको उग्रश्रवा सूत ने महाभारत की कथा सुनाई, स्वयं भार्गव थे। किन्तु इस विषय में भी हमें विचारों का संतुलन रखने की आवश्यकता है।
अतएव भारतवंश की सीधी-सादी युद्धकथा को भारतीय धर्म के विश्वकोश में डालने का भगीरथ आयोजन महाभारत में है। फिर भी अगस्त्य, आत्रेय, कण्व, कश्यप, गौतम, वशिष्ठ आदि ऋषिकुलों के वर्णन को महाभारत में उतना स्थान नहीं मिला, जितना भृगुवंश को। महाभारत के कथा-प्रवाह में वे कथाएं छिप-सी गई हैं, पर 'भार्गवों के उपाख्यान सिर ऊंचा उठाये हुए बार-बार हमारे सामने आकर दर्शन देते हैं, तथा भार्गव महापुरुषों के जो देवतुल्य आकार कल्पित किये गए हैं, वे भीष्म, कर्ण, कृष्ण और अर्जुन जैसे अतिमानवों के साथ टक्कर लेते हैं और कहीं उनको भी पीछे छोड़ जाते हैं।'[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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