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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 23-29
14. दिग्विजय
यहीं अनेक लड़ाकू जातियों के कोठार भरे थे। महाभारतकार ने लोहित देश के दश-मण्डल इस नाम से इनका उल्लेख किया है। हिन्दूकुश के उत्तर-पश्चिम में वंक्षु की शाखा बल्ख नदी के दोनों ओर की भूमि बाह्लीक जनपद थी। यहाँ के निवासी घोर लड़ाके थे, जो बड़ी रगड़ के बाद ही वश में किये जा सके। वंक्षु के दक्षिण और बाह्लीक के पूर्व का रेतीला प्रदेश प्राचीन काल में ‘चोल’ कहलाता था और आज भी उसे चोलिस्तान कहते हैं। बाल्हीक तक दख़ल कर लेने के बाद चुनी हुई सेना लेकर अर्जुन ने उत्तर-पूर्व की राह पकड़ी और वहाँ जो दस्यु या ईरानी बसे थे, उनसे लोहा लिया। उसके बाद उसने पामीर के पठार के भी उस पार चीनी तुर्किस्तान की ओर छापा मारा। अवश्य ही इसी प्रदेश में परमकम्बोज और उत्तर ऋषिक इन जातियों का निवास था। ऋषिकों के साथ अर्जुन का सबसे भयंकर युद्ध हुआ, जिसकी उपमा तारकासुर और कार्तिकेय के युद्ध से दी गई है। ऋषिक लोगों की पहचान निश्चित रूप से यूची जाति से की जाती है, जिनकी भाषा ‘आर्षी’ कहलाती थी। ऋषिकों के ही अन्तर्गत एक उपजाति तुषार या तुखार कहलाती थी। महाभारत के इस महत्त्वपूर्ण भौगोलिक प्रकरण के लेखक की पैनी दृष्टि बाह्लीक, वंक्षु और कम्बोज से लेकर मध्य एशिया के ऋषिकों तक से भली-भाँति परिचित थी। ईसवी-पूर्व दूसरी शती में यूची या ऋषिक हूणों के दबाव से चीनी तुर्किस्तान से खदेड़े जाकर बल्ख की ओर चले आये थे। महाभारत का वह प्रकरण उससे कुछ पूर्व काल का होना चाहिए। इस विजय से वापस लौटते हुए अर्जुन की विजय-यात्रा मानसरोवर और कैलास के आस-पास के हाटक नामक भू-प्रदेश से गुजरती है। अन्त में वह वीर अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ विविध रत्न और धन का संग्रह करके इन्द्रप्रस्थ लौट आया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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