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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 23-29
14. दिग्विजय
त्रिगर्त के राजा पर्वतीय कहलाते थे। भारत के प्राचीन भूगोल में दो पर्वतीय प्रदेश प्रसिद्ध थे, जिनमें से एक कुल्लू, कांगड़ा की पहाड़ी रियासतों वाला यही प्राचीन त्रिगर्त देश था, जहाँ के जनपदों को पुराणों के भुवन कोश में पर्वताश्रयी कहा गया है। यहाँ अधिकांश गणराज्य थे, जिनके लिए महाभारत में ‘उत्सव-संकेत’ शब्द आया है। रघुवंश में भी रघु द्वारा इसी प्रदेश में उत्सव-संकेतों की विजय का उल्लेख है। उत्सव-संकेत प्रदेश कांगड़ा और रामपुर बशहर के बीच किन्नरों का प्रदेश जान पड़ता है। उत्सव-संकेत संज्ञा उस प्रदेश की जातियों के लिए इसलिए प्रयुक्त होती थी, क्योंकि उनमें उत्सव या विशेष मेलों के अवसर पर सामूहिक रूप से वर-कन्याओं के विवाह स्थिर किये जाते थे। ‘संकेत’ का विशेष पारिभाषिक अर्थ विवाह या स्त्री-पुरुष का समागम है। वर्णरत्नाकर में मदनगृह को संकेतगृह कहा गया है। कुछ मैथिल ब्राह्मणों में भी इस प्रकार की प्रथा बची रह गई है। त्रिगर्त-कुलूत के उलझे हुए भौगोलिक वर्णन के अनन्तर महाभारतकार ने पश्चिमोत्तर भारत के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रदेशों की विजय का उल्लेख किया है। इनमें कश्मीर सुविदित है। दार्व, चिनाब और रावी के उपरले प्रदेश के बीच का भूभाग जम्मू का इलाका था, जिसे अब ‘डुग्गर’ कहते हैं। अभिसार वर्तमान ‘छिभाल’ प्रदेश था, जिसमें पुंछ, रजौरी और भिम्भर की रियासतें हैं। मानचित्र देखने से स्पष्ट ज्ञात होता है कि चिनाव के पूरब का प्रदेश दार्व, उसके पश्चिम का अभिसार, एवं उसके भी पश्चिम में झेलम और सिन्धु के बीच का प्रदेश उरशा कहलाता था, जिसे अब हजारा कहते हैं। अभिसार, उरशा और सिंहपुर (नमक के पहाड़ों के प्रदेश की राजधानी) इन तीनों राजाओं के साथ अर्जुन को भारी युद्ध करना पड़ा। इसके बाद का भौगोलिक वर्णन और भी उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ता है। उसमें कश्मीर की उत्तर-पश्चिम दरद देश का उल्लेख है, जिसे इस समय दर्दिस्तान कहते हैं और गिलगित तथा यासीन जिसके प्रसिद्ध स्थान है। इसके उत्तर में वंक्षु नदी या आमू दरिया के उस पार प्राचीन कम्बोज जनपद था, जिसे इस समय पामीर का ऊंचा पठार कहते है। दर्दिस्तान के ठीक पश्चिम में काफिरस्तान-कोहिस्तान का जो प्रदेश हिन्दूकुश तक फैला हुआ है, वह प्राचीन भारतीय भूगोल की परिभाषा में लोह या रोह कहलाता था। इसी के नाम से मध्यकाल में अफ़ग़ानिस्तान के कुछ निवासी रुहेले कहलाए। प्राचीन भुवनकोष में त्रिगर्त के अतिरिक्त यह दूसरा पर्वतीय प्रदेश था। पाणिनि ने अपने भूगोल में इसका विशेष रूप से उल्लेख किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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