भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 1
इस प्रकार पुराणवेत्ता अर्थात पुराणकाल के वृत्तान्तों का पारायण करने वाले विद्वानों की कल्पना उत्तर वैदिक काल में हो चुकी थी। अथर्ववेद-व्रात्यसूक्त में विद्याओं का परिगणन करते हुए कहा गया हैः
‘इतिहास, पुराण, गाथा और नाराशंसी, ये विद्याएं व्रात्यसंज्ञक ब्रह्म के साथ फैलती हैं। वह, जो इस प्रकार विचार करता है, इस प्रकार की विद्याओं का प्रियधाम बन जाता है।’ गाथा और नाराशंसी ये दोनों प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री के अंग थे।
‘नर का आशंसन करने वाले गानों से और अपने पूर्वपुरुषों के महत्ज्ञान का चिन्तन करने से हम अपने भीतर मन का निर्माण करते हैं।’ राष्ट्र के मन को प्रदीप्त करने के ये ही दो उपाय हैं। पूर्वजों के संचित ज्ञान और कर्म का सम्यक कीर्त्तन, अनुशीलन और आचरण पुनीत राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। जनमेजय ने मन की इस स्वाभाविक प्रवृत्ति से प्रेरित होकर महाभारत के आरम्भ में ही कहा थाः
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज