भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 1
आदि पर्व की प्रथम पंक्ति में ही लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत को पौराणिक कहा गया है, जिन्होंने कुलपति शौनक के द्वादश वार्षिक सूत्र में महाभारत का पारायण सुनाया। प्राचीन वैदिक साहित्य में अमुक विद्या या अमुक शास्त्र के अध्ययन करने वाले उसी के नाम से विख्यात होते थे। वैदिक महाविद्यालयों में-जिन्हें प्राचीन परिभाषा में ‘चरण’ कहा जाता था-वेद, ब्राह्मण, सूत्र आदि साहित्य के अध्ययन और अध्यापन करने की परम्परा थी और पाणिनि के ‘तदधीते तद्वेद’ सूत्र के अनुसार उन-उन विद्वानों का नामकरण होता था। कालांतर में जब शास्त्रों की संख्या बढ़ी और नए-नए विषयों का प्रादुर्भाव हुआ, तब वैदिक चरणों में जो परिमित संख्यक विषय थे, उनके अतिरिक्त भी नए-नए विषय अध्ययन और अध्यापन के क्षेत्र में आ गए। व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छन्द, अन्य वेदांग, व्याख्यान, अनुव्याख्यान, गाथा, श्लोक, नटसूत्र, भिक्षुसूत्र इत्यादि अनेक नए विषयों की उद्भावना हुई और दिग्गज आचार्य इनसे सम्बन्धित ग्रन्थों-उपग्रन्थों की रचना करने लगे। उसी परम्परा में इतिहास-पुराण का अध्ययन भी विशेष रूप से किया जाने लगा। इस प्रकार की ऐतिहासिक और सृष्टि सम्बन्धी अनुश्रुतियों पर विचार करने वाले और उनकी रक्षा करने वाले विद्वानों का उल्लेख अथर्ववेद में आता है। वहाँ इस प्रकार के विद्वान और मेधावी ऋषियों को पुराणवित कहा गया हैः
‘जैसी यह भूमि पहले थी, उसके जिस स्वरूप का ज्ञान मेधावी ऋषियों को था, उसे जो शब्दों में जानता है, उसे मैं पुराणकाल का वेत्ता-पुराणवित-कहता हूँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अथर्ववेद 11।8।7
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