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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 143-152
पाण्डवों के वहाँ रहते हुए किसी ब्राह्मण ने आकर सूचना दी कि पांचाल देश में वहाँ के राजा यज्ञसेन द्रुपद की पुत्री कृष्णा याज्ञसेनी का स्वयंवर होने वाला है। उसे सुनकर पाण्डवों के मन ऐसे अस्वस्थ हो गए जैसे कोई नया कांटा चुभ गया हो। उनकी यह दशा देखकर कुन्ती ने युधिष्ठिर से कहा, “यहाँ रहते हुए हमें अधिक काल हो गया। भिक्षा भी ठीक से नहीं मिलती। अच्छा हो, पांचाल देश में चलें। सुनती हूं, पांचाल देश बड़ा रमणीय है और वहाँ सब प्रकार सुभिक्ष है।” इस प्रकार सलाह करके सब लोग राजा द्रुपद की राजधानी को गए। मार्ग में गंगातट पर सोमश्रवायण तीर्थ में पहुँचे। वहाँ गंगातट पर अग्निपर्ण गन्धर्व घाट रोके हुए जल-विहार कर रहा था। अर्जुन के साथ उसकी झड़प हो गई। अर्जुन ने उसे बान्ध, लिया। तब उसकी पत्नी के अनुनय-विनय करने पर युधिष्ठिर ने उसे अभय-दान दिया। गन्धर्व ने प्रसन्न होकर उन्हें चाक्षुषी-विद्या प्रदान की, जिसके द्वारा वे लोग तीनों लोकों में जिसे भी देखना चाहें, देख सकते थे। उसी गंधर्व ने उन्हें सूर्य की कन्या तपती और पाण्डवों के पूर्वज संवरण के विवाह की कथा सुनाई। इन्हीं तपती और संवरण के पुत्र कुरु थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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