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जो भक्त भक्तिपूर्वक विष्णु, नारायण, कृष्ण, माधव, मधुसूदन, हरि, नरहरि, राम, गोविन्द, दधिवामन- इन दस मांगलिक नामों को जपता है; वह सौ बार जप करके नीरोग हो जाता है। जो एक लाख जप करता है; वह निश्चय ही बन्धन से मुक्त हो जाता है। दस लाख जप करके महावन्ध्या पुत्र को जन्म देती है। शुद्ध एवं हविष्य का भोजन करके जपने वाला दरिद्र इनके जप से धनी हो जाता है। एक करोड़ जप करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है।
नारायणक्षेत्र में शुद्धतापूर्वक जप करने वाले मनुष्य को सारी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं[1]। जो जल में स्नान करके ‘ऊँ नमः’ के साथ शिव, दुर्गा, गणपति, कार्तिकेय, दिनेश्वर, धर्म, गंगा, तुलसी, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती- इन मंगल नामों का जप करता है; उसका मनोरथ सिद्ध हो जाता है और दुःस्वप्न भी शुभदायक हो जाता है। ‘ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा’- यह सप्तदशाक्षर- मंत्र लोगों के लिए कल्पवृक्ष के समान है। इसका पवित्रतापूर्वक दस बार जप करने से दुःस्वप्न सुखदायक हो जाता है[2]। एक करोड़ जप करने से मनुष्यों को मंत्र सिद्ध हो जाता है और सिद्धमंत्र वाला मनुष्य अपनी सारी अभीष्ट सिद्धियों को पा लेता है। जो मनुष्य ‘ऊँ नमो मृत्युञ्जयाय स्वाहा’- इस मंत्र का एक लाख जप करता है, वह स्वप्न में मरण को देखकर भी सौ वर्ष की आयु वाला हो जाता है[3]। पूर्वोत्तर मुख होकर किसी विद्वान से ही अपने स्वप्न को कहना चाहिए; किंतु जो शराबी, दुर्गतिप्राप्त, नीच, देवता और ब्राह्मण की निन्दा करने वाला, मूर्ख और (स्वप्न के शुभाशुभ फलका) अनभिज्ञ हो; उसके सामने स्वप्न को नहीं प्रकट करना चाहिए। पीपल का वृक्ष, ज्योतिषी, ब्राह्मण, पितृस्थान, देवस्थान, आर्यपुरुष वैष्णव और मित्र के सामने दिन में देखा हुआ स्वप्न प्रकाशित करना चाहिए। इस प्रकार मैंने आपसे इस पवित्र प्रसंग का वर्णन कर दिया; यह पापनाशक, धन की वृद्धि करने वाला, यशोवर्धक और आयु बढ़ाने वाला है। अब और क्या सुनना चाहते हैं?
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