महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
77.बारहवां दिन
धृष्टद्युम्न द्रोण के आने की प्रतीक्षा किए बिना ही आगे बढ़ चला। द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न को, जिसका जन्म ही द्रोणाचार्य के वध के लिये हुआ था, अपनी ओर आते देखकर द्रोणाचार्य क्षण भर के लिये भयभीत से हुए मानो काल का आगमन हो रहा हो। उन्हें स्मरण हो आया कि धृष्टद्युम्न के हाथों मेरी मृत्यु निश्चित है और आचार्य उसकी ओर न बढ़कर जिधर राजा द्रुपद युद्ध कर रहे थे, उस ओर घूम गये। द्रुपद की सेना को खूब परेशान करने और खून की नदी बहाने के बाद द्रोणाचार्य ने फिर युधिष्ठिर की ओर अपना रथ बढ़ाया। आचार्य को देखते ही युधिष्ठिर अविचलित भाव से बाणों की वर्षा करने लगे। इस पर सत्यजित द्रोणाचार्य पर टूट पड़ा। भयानक संग्राम छिड़ा। इस समय द्रोणाचार्य ऐसे प्रतीत हुए मानो साक्षात काल हों। पांडव-सेना के वीरों को एक-एक करके वह मारने लगे। पांचाल-राजकुमार वृक के प्राण उनके बाणों ने ले लिये। सत्यजित का भी वही हाल हुआ। यह देख विराट का पुत्र शतानीक द्रोण पर झपटा और दूसरे ही क्षण शतानीक का कुंडलों वाला सिर युद्ध-भूमि पर लोटने लगा। इसी बीच केदम नाम का राजा द्रोणाचार्य से आ टकराया और उसको भी प्राण से हाथ धोना पड़ा। द्रोण आगे ही आगे बढ़ते चले गये। उनके प्रबल वेग को रोकने के लिये हिम्मत करके वसुधान आया और वह भी यमलोक पहुँचा। युधामन्यु, सात्यकि, शिखंडी, उत्तमौजा आदि कितने ही महारथियों को तितर-बितर करते हुए द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के नजदीक जा पहुँचे। उस समय द्रुपदराज का एक और पुत्र पांचाल्य अपने प्राणों की जरा भी परवाह न करके अदम्य जोश के साथ द्रोण पर टूट पड़ा। वह भी मृत होकर रथ से जमीन पर इस प्रकार गिरा जैसे आकाश से तारा टूटकर गिरता हो। "राधेय! आचार्य द्रोण का पराक्रम तो देखो! पांडवों की सेना कैसी बहाल होकर इधर-उधर भाग रही है। मैं कहता हूँ कि ये पांडव अब युद्ध में अवश्य हार जायेंगे।" दुर्योधन ने कहा। कर्ण को यह ठीक नहीं लगा। बोला– "दुर्योधन! पांडवों को हराना इतना सरल काम नहीं हैं। पांडव ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो युद्ध से इतनी जल्दी पीछे हट जायें। वे कभी उन घोर यातनाओं को नहीं भूल सकेंगे जो उन्हें व विष से, आग से और जुए के खेल से पहुँची थी। वनवास के समय जो कष्ट झेलने पड़े उन्हें कभी वे भूल नहीं सकते। देखो तो, वे पांडव-वीर फिर से इकट्ठे होकर आचार्य पर हमला कर रहे हैं। कितने ही वीर युधिष्ठिर की रक्षा के लिये आ गये हैं। भीम, सात्यकि, युधामन्यु, क्षत्रधर्म, नकुल, उत्तमौजा, द्रुपद, विराट, शिखंडी, धृष्टकेतु आदि बहुत से वीर आ गये हैं और अब द्रोणाचार्य पर अचानक हमला हो रहा है। यद्यपि वह महान वीर हैं फिर भी उनकी सहन-शक्ति की भी कोई सीमा है। भेड़िए भी एक साथ हमला करके एक भारी हाथी को मार सकते हैं। इसलिये चलो, चलें। उन्हें अकेले छोड़ना ठीक नहीं।" यह कहता हुअ कर्ण आचार्य द्रोण की सहायता को चल दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज