महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
71.आठवां दिन
"मकर-व्यूह क्या चीज होती है? कूर्म-व्यूह किसे कहते हैं? श्रृंगारक होता क्या है? बाणों की बौछार से अपने चारों तरफ किला-बंदी कर लेना कैसे हो सकता था? शरीर के बाणों से बिंध जाने पर भी कैसे जीवित रहा जाता था? कवचों से वीरों की कहाँ तक रक्षा होती थी?" इत्यादि बातों का विवरण व्यास जी ने अपने ग्रंथ में इस ढंग से नहीं दिया है जिससे आजकल के पाठकगण उसे समझ सकें। जितना विवरण उन्होंने दे दिया है वही उनकी विशेष प्रतिभा का द्योतक है। आठवें दिन का युद्ध शुरू हुआ तो पहले ही धावे में भीमसेन ने धृतराष्ट्र के आठ बेटों का वध कर दिया। यह देखकर दुर्योधन का हृदय विदीर्ण हो गया। कौरव सेना के लोग डरे कि कहीं भीमसेन अपनी प्रतिज्ञा आज ही न पूरी कर दे। उस दिन एक ऐसी घटना हुई जिससे अर्जुन शोक-विह्वल हो उठा। उसका लाड़ला बेटा और साहसी वीर इरावान, जो एक नागकन्या से पैदा हुआ था, उस दिन खेत रहा। वीर इरावान पांडवों की सहायता के लिये आया हुआ था और उसने ऐसी कुशलता से युद्ध किया था कि सारी कौरव-सेना में भारी तबाही मच गई थी। यह देखकर दुर्योधन ने राक्षस वीर अलम्बुष को इरावान के विरुद्ध लड़ने के लिये भेजा। दोनों में बड़ी देर तक घोर संग्राम होता रहा। अंत में राक्षस के हाथों इरावान मारा गया। अर्जुन को उस बात की खबर मिली तो यह दु:ख उससे सहा नहीं गया। भरी हुई आवाज में श्रीकृष्ण से बोला– "वासुदेव! काका विदुर ने पहले ही कहा था कि दोनों पक्षवालों को युद्ध से दु:सह दु:ख प्राप्त होगा। धिक्कार है हमें, जो सिर्फ सम्पत्ति के अर्थ ऐसे निकृष्ट कार्य करने पर उतारू हो गये हैं! इस भारी हत्याकांड के परिणामस्वरूप हम या वे (कौरव) न जाने कौन-सा सुख प्राप्त करेंगे। मधुसूदन, अब मैंने जाना कि भाई युधिष्ठिर ने क्यों दुर्योधन से अनुरोध किया था कि कम-से-कम पांच गांव देकर ही संधि कर लें। सचमुच उन्होंने दूर की सोची थी। किन्तु मूर्ख दुर्योधन ने पांच गांव तक देने से इनकार कर दिया, जिससे अब दोनों पक्षों में ये जो पाप-कर्म हो रहे हैं– उन सबका वही कारण बना। यदि मैं इस युद्ध में भाग ले रहा हूँ तो वह केवल इसीलिये कि लोग यह कहकर मेरी निन्दा न करें कि यह कायर है, डरपोक है! "जब मैं युद्ध-क्षेत्र में पड़े हुए इन क्षत्रियों को देखता हूँ तो मेरा हृदय गरम हो उठता है। धिक्कार है हमारे जीवन को, जो अधर्म की ही भित्ति पर स्थिति है !"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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