महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
65.दूसरा दिन
उत्तेजित होकर भारी गदा हाथ में लेकर वह द्रोण पर टूट पड़ा। आचार्य ने गदा को बाणों से चूर-चूर कर दिया। फिर धृष्टद्युम्न तलवार लेकर द्रोण पर ऐसे झपटा, जैसे हाथी पर सिंह। किंतु द्रोण ने शरों की वर्षा से राजकुमार का शरीर बुरी तरह से बींध डाला। यहाँ तक कि धृष्टद्युम्न से चला भी नहीं गया। इतने में पांचाल-राजकुमार की यह हालत देखकर भीमसेन उसके बचाव के लिये दौड़ा और द्रोणाचार्य पर बाणों की एक साथ वर्षा कर दी। इससे पल-भर के लिये द्रोण रुक गये। यह समय पाकर भीमसेन ने धृष्टद्युम्न को अपने रथ पर बिठा लिया और युद्ध-क्षेत्र से बाहर निकाल लिया। यह देखकर दुर्योधन ने कलिंगराज की सेना को आज्ञा दी कि वह भीम का पीछा करे और उस पर हमला करे। कलिंग-सेना को भीमसेन ने तहस-नहस कर दिया। उस सेना के असंख्य सैनिक मृत्यु के घाट उतार दिये। भीम ने ऐसा प्रलय मचाया कि देखकर सेना हाहाकार कर उठी। यह कहने लगी कि कहीं यमराज तो भीम के रूप में नहीं उतर आये। एक बार निराशा का यह भाव मन में आना था कि कौरव -सेना की हिम्मत टूट गई। सैनिकों के मन में भय छा गया। उनका हौसला पस्त हो गया। कौरव-सेना का यह हाल देखकर भीष्म अर्जुन से लड़ना छोड़कर उनकी सहायता के लिये इधर आ पहुँचे। यह देखकर सात्यकि, अभिमन्यु आदि पांडव -वीर भी भीमसेन की रक्षा के लिये आ गये और भीष्म पर सबने हमला कर दिया। सात्यकि के चलाये एक बाण ने भीष्म के सारथी को मार गिराया। सारथी के गिर जाने पर घोड़े हवा से बातें करते हुए अत्यंत वेग से भाग खड़े हुए। यह देखकर पांडव-सेना के वीर बांसों उछल पड़े और साथ ही कौरवों की सेना पर टूट पड़े। इससे कौरव-सेना में बड़ी तबाही मची। सब कौरव-वीर पश्चिम की ओर देख-देखकर यह मानने लगे कि कब सूर्यास्त हो और युद्ध बंद हो, ताकि इस तबाही से मुक्ति मिले। निदान सूर्य अस्त हुआ। संध्या हुई। भीष्म द्रोणाचार्य से बोले –"आचार्य! उचित यही होगा कि अब युद्ध बंद कर दिया जाय। आज हमारी सेना के वीर बहुत थक गये हैं" और आज का युद्ध बंद हुआ। अर्जुन आदि पांडव-वीर विजय के बाजे बजाने और आनंद से झूमते हुए अपने शिविरों को लौटे। पहले दिन की लड़ाई के बाद पांडवों में जो आतंक छाया हुआ था, वह आज के युद्ध के अंत में कौरवों के मन में छा गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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