नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
10. नन्द बाबा-श्रीकृष्ण-जन्म
महर कहती है- 'कोई कन्या है! तप्तकाञ्चन गौर कन्या' किंतु मैं तो इस अतसी-कुसुम-सुन्दर शिशु को ही देखता हूँ उसके वक्ष से सदा सटा। मैं इसी को देखने के लोभ में न गोष्ठ में बैठ पाता और न गोकुल का ही निरीक्षण कर पाता। रोहिणी भाभी ने भी हँसकर उलाहना दिया है- 'आप ऐसे ही सदा भवन में ही रहते रहे हैं? यशोदा ने इतना वश में कर रखा है आपको? अब इन दिनों आप इनका सान्निध्य नहीं पा सकते। ये मेरी सुरक्षा में हैं और गोकुल के लोगों को सम्हालना आवश्यक है। आप उन्हें रोकेंगे नहीं तो वे अपने घरों की सब सम्पत्ति इस घर में देकर स्वयं कंगाल हो जायेंगे। सचमुच गोपों को-गोपियों को रोका जाना चाहिए; किंतु मैं किसी को रोक भी कैसे सकता हूँ और किस-किस को रोकूँगा? अभी मैंने एक सामान्य सेवक को मना किया। वह असाधारण अत्यन्त बहुमूल्य रत्नों का टोकरा डाल गया है यहाँ। मेरे रोकने पर बोला- 'आप तो इधर निकल ही नहीं पाते वन की ओर। अपने आसपास की वनभूमि ऐसे असंख्य पाषाणों से रात्रि में भी ज्योतिर्मय रहती है। हम सब ने गायों को, वृषभों को, बछडों को इनसे भरपूर सजाया है। जो घर में आपकी पुत्रवधुयें हैं, उनकी इच्छा हो तो वे सिर पर उठा न सकें, इतने रंग-बिरंगे ये पत्थर पड़े हैं। हम तो गोप हैं। हमारी देवता गौयें प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें, हमको क्या करना है इन पाषाणों का। ये तो थोड़े से सुन्दर चुन लाया हूँ कि हमारा युवराज आ रहा है, वह इनसे खेलेगा।' 'यह लाल के लिए!' आजकल गोकुल में ही नहीं, पूरे व्रज में-दूर-दूर तक के गोष्ठों में एक ही धुन है गोपों-गोपियों को। दिनभर और रात्रि में भी दूर-दूर से उपहार लेकर ये लोग आते हैं। इनके प्रेमोपहार को कैसे अस्वीकृत कर दूँ। रत्न, दुर्लभ औषधियाँ, शंख और अब तो नवीन बात सुनी है कि कालिन्दी-पुलिन पर भी मुक्ता मिलने लगे हैं। किन्हीं-किन्हीं सरों में, सरिताओं में नन्हीं मुक्ता-शुक्ति होती हैं, यह मैंने शबरों से सुना था; किंतु श्रीयमुना में तो ये नहीं थीं। |
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