नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
10. नन्द बाबा-श्रीकृष्ण-जन्म
जो अपार स्नेह कपि, श्वान तथा पक्षियों से भी आगे बढ़कर गौओं को सुशिक्षित करने लगा है, उसी प्रेम के परवश वह आनन्द-सिन्धु शिशु मेरी महर के अंक में आया है। अन्यथा नन्द के तो इतने पुण्य थे नहीं। अब जिनका इतना स्नेह है, उनका स्वत्व अस्वीकार कैसे किया जा सकता है। वह आ रहा है उनके प्रेम-परवश, उन सबकी पुकार से और उनका ही है। इधर अपने गोष्ठ में भी पता नहीं कैसे इतनी अधिक गौयें आ गयी हैं। मैं गणना करने में कुछ दुर्बल हूँ। मेरी ही भूल होगी; किंतु गोप तो कहते हैं कि उनके गोष्ठों में भी कहीं से बहुत सुन्दर, सुपुष्ट सुरभियाँ आ गयी हैं। सब गायें सद्य:प्रसूता हो गयी हैं अथवा शीघ्र होने वाली हैं और इनका दूध इतना बढ़ गया है- मानो वे दूध से ही बनी हों। गोप कहते हैं- 'पूरा महावन भली प्रकार मृदुल तृणों से इस वर्ष भरा है। लतायें पुष्पों से और तरु-फल-भार से झुके हैं। वन में मधु-छत्रकों की भरमार हो गयी है और मधुमक्ख्यियाँ हैं कि मधुपूर्ण छत्रक छोड़कर सहसा दूसरा छत्रक बना लेती हैं। मानो आमन्त्रण देती हैं- 'इसे ले लो और हमारा श्रम सार्थक करो।' अभी भाद्रपद का प्रारम्भ ही है; किंतु स्नान करने जाता हूँ तो श्रीयमुना का जल इतना स्वच्छ-इतना निर्मल हो रहा है कि तल तक के कण स्पष्ट दीखते हैं। सेवक भगवान नारायण की अर्चा के लिए प्रफुल्ल पद्म ले आते हैं। वे कहते हैं- 'इस वर्ष सरोवरों में ह्रदों में इतने अधिक और इतने रंगों के पद्म तथा कुमुदिनी-पुष्प हैं कि हमारे सब ऋषि-मुनि साप्ताहिक सहस्त्रार्चन इन्हीं से करेंगे तो भी ये समाप्त नहीं होंगे। गोकुल का सबसे बड़ा सौभाग्य है कि हमें महर्षि शाण्डिल्य के समान तपोधन पुरोहित प्राप्त हुए हैं। उनका सान्निध्य का लोभ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को यहाँ ले आ रहा है। महर्षि तो अपनी महानतावश ही कहते हैं- 'ये महत्तम पुरुष व्रजपति के पार्श्व में रहने का लाभ लेने आये हैं।' |
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