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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अष्टादश अध्याय
इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मन: । संजय बोले-इस प्रकार मैंने श्रीवासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अद्भुत रहस्य युक्त, रोमांच कारक संवाद को सुना। श्रीव्यास जी की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग को अर्जुन के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण से प्रत्यक्ष सुना है। राजन्! भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अद्भुत संवाद को पुनः-पुनः स्मरण करके मेरे चित्त में महान् आश्चर्य होता है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ। राजन्! जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है। श्रीमद्भगवद् गीता-‘मोक्ष सन्यास योग’ नामक अष्टादश अध्याय |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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