कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत वें अध्याय में संजय ने कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार करने और पांडव सेना के पलायन करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र द्वारा संजय से युद्ध का वृतांत पूछना

धृतराष्ट्र ने पूछा– संजय! युद्धस्थल में भीमसेन के द्वारा जब कौरव सेनाएँ भगा दी गयीं, तब दुर्योधन, शकुनि, विजयी वीरों में श्रेष्ठ कर्ण, मेरे अन्य योद्धा कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा अथवा दुःशासन ने क्या कहा? मैं पाण्डुनन्दन भीमसेन का पराक्रम बड़ा अद्भुत मानता हूँ कि उन्होंने अकेले ही समरांगण में मेरे समस्त योद्धाओं के साथ युद्ध किया। शत्रुसूदन राधापुत्र कर्ण ने भी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सारा कार्य किया। संजय! वही समस्त कौरव योद्धाओं का कल्याणकारी आश्रय, कवच के समान संरक्षक, प्रतिष्ठा और जीवन की आशा था। अमित तेजस्वी कुन्तीपुत्र भीमसेन के द्वारा अपनी सेना को भगायी गयी देख अधिरथ और राधा के पुत्र कर्ण ने युद्ध में कौन-सा पराक्रम किया? संजय! यह सब वृतान्त मुझे बताओ, क्योंकि तुम कथा कहने में कुशल हो।

कर्ण द्वारा पांडव सैनिकों को खदेड़ना

संजय बोला- महाराज! प्रतापी सूतपुत्र ने अपराह्न काल में भीमसेन के देखते-देखते समस्त सोमकों का संहार कर डाला। इसी प्रकार भीमसेन ने भी कौरवों की अत्यन्त बलवती सेना को मार गिराया। तत्पश्चात् कर्ण ने शल्य से कहा- मुझे पांचालों के पास ले चलो। बुद्धिमान भीमसेन के द्वारा कौरव सेना को भगायी जाती देख रथी कर्ण ने सारथि शल्य से कहा- मुझे पांचालों की ओर ही ले चलो। तब महाबली मद्रराज शल्य ने महान वेगशाली श्‍वेत अश्वों को चेदि, पांचाल और करूषों की ओर हाँक दिया। शुत्र सेना को पीड़ित करने वाले शल्य ने उस विशाल सेना में प्रवेश करके जहाँ सेनापति की इच्छा हुई, वहीं बड़े हर्ष के साथ घोड़ों को रोक दिया। प्रजानाथ! व्याघ्रचर्म से आच्छादित और मेघ गर्जन के समान गम्भीर घोष करने वाले उस रथ को देखकर पाण्डव तथा पांचाल सैनिक त्रस्त हो उठे। तदनन्तर उस महायुद्ध में फटते हुए पर्वत और गर्जते हुए मेघ के समान उस के रथ का गम्भीर घोष प्रकट हुआ। तत्पश्चात् कर्ण ने कान तक खींचकर छोड़े गये सैकड़ों तीखे बाणों द्वारा पांडव सेना के सैकड़ों और हजारों वीरों का संहार कर डाला।

संग्राम में ऐसा पराक्रम प्रकट करने वाले उस अपराजित वीर को महाधनुर्धर पाण्डव महारथियों ने चारों ओर से घेर लिया। शिखण्डी, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, नकुल-सहदेव, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और सात्यकि ने अपने बाणों की वर्षा द्वारा राधापुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा से उसे सब ओर से घेर लिया। उस समय शूरवीर नरश्रेष्ठ सात्यकि ने रणभूमि में बीस पैने बाणों द्वारा कर्ण के गले की हँसली पर प्रहार किया। शिखण्डी ने पच्चीस, धृष्टद्युम्न ने सात, द्रौपदी के पुत्रों ने चौसठ, सहदेव ने सात और नकुल ने सौ बाणों द्वारा कर्ण को युद्ध में घायल कर दिया। तदनन्तर महाबली भीमसेन ने समरभूमि में कुपित हो राधापुत्र कर्ण के गले की हँसली पर झुकी हुई गाँठ वाले नब्बे बाणों का प्रहार किया। तब अधिरथपुत्र महाबली कर्ण ने हँसकर अपने उत्तम धनुष की टंकार की और उन सबको पीड़ा देते हुए उन पर पैने बाणों का प्रहार आरम्भ किया। भरत श्रेष्ठ! राधापुत्र कर्ण ने पाँच-पाँच बाणों से उन सब को घायल कर दिया। फिर सात्यकि का ध्वज और धनुष काटकर उनकी छाती में नौ बाणों का प्रहार किया।[1]

आर्य! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए कर्ण ने भीमसेन को तीस बाणों से घायल किया और एक भल्ल से सहदेव की ध्वजा काट डाली। इतना ही नहीं, शत्रुओं को संताप देने वाले कर्ण ने तीन बाणों से सहदेव के सारथि को भी मार डाला औेर पलक मारते-मारते द्रौपदी के पुत्रों को रथहीन कर दिया! भरतश्रेष्ठ! वह अद्भुत-सा कार्य हुआ। उसने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों से उन समस्त वीरों को युद्ध से विमुख करके पांचाल वीरों और चेदि-देशीय महारथियों को मारना आरम्भ किया। प्रजानाथ! समर में घायल होते हुए भी चेदि औेर मत्स्य देश के वीरों ने एकमात्र कर्ण पर धावा करके उसे बाण-समूहों से ढक दिया। महारथी सूतपुत्र ने पैने बाणों से उन सब को घायल कर दिया। प्रजानाथ! समर में मारे जाते हुए चेदि और मत्स्य देश के वीर सिंह से डरे हुए मृगों के समान रणभूमि में कर्ण से भयभीत होकर भागने लगे। भारत! महाराज! यह अद्भुत पराक्रम मैनें अपनी आँखों देखा था कि अकेले प्रतापी सूतपुत्र ने समरांगण में पूरी शक्ति लगाकर प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले पाण्डव पक्षीय धनुर्धर वीरों को अपने बाणों द्वारा रणभूमि में आगे बढ़ने से रोक दिया। भरतनन्दन! वहाँ महामनस्वी कर्ण की फुर्ती देखकर चारणों सहित सिद्धगण और सम्पूर्ण देवता बहुत संतुष्ट हुए। धृतराष्ट्र के महाधनुर्धर पुत्र सम्पूर्ण धनुर्धरों तथा रथियों में श्रेष्ठ नरोत्तम कर्ण की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। महाराज जैसे ग्रीष्म ऋतु में अत्यन्त प्रज्वलित हुई आग सूखे काठ एवं घास-फूस को जला देती है, उसी प्रकार कर्ण शत्रुसेना को दग्ध करने लगा।

कर्ण के द्वारा मारे जाते हुए पाण्डव सैनिक रणभूमि में उस महारथी वीर को देखते ही भयभीत हो जहाँ-तहाँ से भागने लगे। कर्ण के धनुष से छूटे हुए तीखे बाणों द्वारा मारे जाने वाले पांचालों का महान आर्तनाद उस महासमर में गूँजने लगा। उस घोर शब्द से पाण्डवों की विशाल सेना भयभीत हो उठी। शत्रुओं के सभी सैनिक रणभूमि में एकमात्र कर्ण को ही सर्वश्रेष्ठ योद्धा मानने लगे। शत्रुसूदन राधापुत्र ने पुनः वहाँ अद्भुत पराक्रम प्रकट किया, जिससे समस्त पाण्डव-योद्धा उसकी ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सके। जैसे जल का महान प्रवाह किसी ऊँचे पर्वत से टकराकर कई धाराओं में बँट जाता है, उसी प्रकार पाण्डव सेना कर्ण के पास पहुँचकर तितर-बितर हो जाती थी। राजन! समरांगण में धूमरहित अग्नि के समान प्रज्वलित होने वाला महाबाहु कर्ण भी पाण्डवों की विशाल सेना को दग्ध करता हुआ स्थिर भाव से खड़ा रहा। महाराज! वीर कर्ण ने बाणों द्वारा पाण्डव-पक्ष के वीरों के मस्तक, कुण्डल सहित कान तथा भुजाएँ शीघ्रतापूर्वक काट डाली। राजन! योद्धाओं के व्रत का पालन करने वाले कर्ण ने हाथी-दाँत की बनी हुई मूँठ वाले खड्गों, ध्वजों, शक्तियों, हाथियों, नाना प्रकार के रथों, पताकाओं, व्यजनों, धुरों, जूओं, जोतों, और भाँति-भाँति के पहियों के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। भारत! वहाँ कर्ण द्वारा मारे गये हाथियों और घोड़ों की लाशों से पृथ्वी पर चलना असम्भव हो गया। रक्त औेर मांस की कीच जम गयी। मरे हुए घोड़ों, पैदलों, रथों और हाथियों से पट जाने के कारण वहाँ की ऊँची-नीची भूमि का कुछ पता नहीं लगता था।[2]

कर्ण का अस्त्र जब वेगपूर्वक बढ़ने लगा तो वहाँ बाणों से घोर अन्धकार छा गया। उसमें अपने और शत्रुपक्ष के योद्धा परस्पर पहचाने नहीं जाते थे। महाराज! राधापुत्र के धनुष से छूटे हुए सुवर्णभूषित बाणों द्वारा समस्त पाण्डव महारथी आच्छादित हो गये। महाराज! समरभूमि में प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले पाण्डव पक्ष के महारथी राधापुत्र कर्ण के द्वारा बारंबार भागने को विवश कर दिये जाते थे। जैसे वन में कुपित हुआ सिंह मृग समूहों को खदेड़ता रहता है, उसी प्रकार शत्रुपक्ष के पांचाल महारथियों को भगाता हुआ महायशस्वी कर्ण समरांगण में समस्त योद्धाओं को त्रास देने लगा। जैसे भेड़िया पशु समूहों को भयभीत करके भगा देता है, उसी प्रकार कर्ण ने पाण्डव सेना को खदेड़ दिया। पाण्डव सेना को युद्ध से विमुख हुई देख आपके महाधनुर्धर पुत्र भीषण गर्जना करते हुए वहाँ आ पहुँचे। राजेन्द्र! उस समय दुर्योधन को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह हर्ष में भरकर सब ओर नाना प्रकार बाजे बजवाने लगा। उस समय वहाँ भगे हुए महाधनुर्धर नरश्रेष्ठ पांचाल मृत्यु को ही युद्ध से लौटने की अवधि निश्चित करके पुन: सूतपुत्र कर्ण से जूझने के लिये लौटे हुए आये। महाराज! शत्रुओं को संताप देने वाला पुरुषश्रेष्ठ राधापुत्र कर्ण उन लौटे हुए शूरवीरों को रणभूमि में बारंबर भगा देता था। भरतनन्दन! कर्ण ने वहाँ बाणों द्वारा बीस पांचाल रथियों और सौ से भी अधिक चेदिदेशीय योद्धाओं को क्रोधपूर्वक मार डाला।

भारत! उसने रथ की बैठकें सूनी कर दीं, घोड़ों की पीठें ख़ाली कर दीं, हाथियों के पीठों और कंधों पर कोई मनुष्य नहीं रहने दिये और पैदलों को भी मार भगाया। इस प्रकार शत्रुओं को तपाने वाला कर्ण मध्याह्नकाल के सूर्य की भाँति तप रहा था। उस समय उसकी ओर देखना कठिन हो गया था। शूरवीर सूतपुत्र का शरीर काल और अन्तक के समान सुशोभित हो रहा था। महाराज! इस प्रकार शत्रुसूदन महाधनुर्धर कर्ण शत्रुपक्ष के पैदल, घोड़े, रथ और हाथियों का संहार करके काल खड़ा हो, उसी प्रकार महाबली महारथी कर्ण सोमकों का विनाश करके युद्धभूमि में अकेला ही डटा रहा। वहाँ हम लोगों ने पांचाल वीरों का यह अदुभत पराक्रम देखा कि वे मारे जाने पर भी युद्ध के मुहाने पर कर्ण को छोड़कर पीछे न हटे। राजा दुर्योधन, दुःशासन, शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, अश्वत्थामा, कृतवर्मा और महाबली शकुनि ने भी पाण्डव सेना के सैकड़ों-हजारों वीरों का संहार का डाला। राजेन्द्र! कर्ण के दो सत्यपराक्रमी पुत्र शेष रह गये थे। वे दोनों भाई क्रोधपूर्वक इधर-उधर से पाण्डव सेना का विनाश करते थे। इस प्रकार वहाँ महान संहारकारी एवं क्रूरतापूर्ण भारी युद्ध हुआ। इसी तरह पाण्डववीर धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और द्रौपदी के पांचों पुत्र आदि ने भी कुपित होकर आपकी सेना का संहार किया। इस प्रकार कर्ण को पाकर जहाँ-तहाँ पाण्डव योद्धाओं का संहार हुआ और महाबली भीमसेन को पाकर रणभूमि मैं आपके योद्धाओं का भी महान विनाश हुआ।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 1-22
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 23-44
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 45-64

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से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण 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