श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 96वें अध्याय में श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्ण के वध का समाचार देने का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है[1]

कृष्ण का अर्जुन से युधिष्ठिर के पास जाने को कहना

संजय कहते हैं- राजन! जब कर्ण मारा गया और शत्रुसेना भाग चली, तब दशाहृनन्दन भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को हृदय से लगाकर बड़े हर्ष के साथ इस प्रकार बोले- धनंजय! पूर्वकाल में वज्रधारी इन्द्र ने वृत्रासुर का वध किया था और आज तुमने कर्ण को मारा है। वृत्रासुर और कर्ण दोनों के वध का वृत्तान्त बड़ा भयंकर है। मनुष्य सदा इसकी चर्चा करते रहेंगे। वृत्रासुर युद्ध में महातेजस्वी वज्र के द्वारा माया गया था; परंतु तुमने कर्ण को धनुष एवं पैने बाणों से ही मार डाला है। कुन्तीनन्दन! चलो, हम दोनों तुम्हारे इस विश्वविख्यात और यशोवर्धक पराक्रम का वृत्तान्त बुद्धिमान कुरुराज युधिष्ठिर को बतावें। उन्हें दीर्घकाल से युद्ध में कर्ण के वध की अभिलाषा थी। आज धर्मराज को यह समाचार बताकर तुम उऋण हो जाओगे। जब यह महायुद्ध चल रहा था, उस समय तुम्हारा और कर्ण का युद्ध देखने के लिये धर्मनन्दन युधिष्ठिर पहले आये थे। परंतु गहरी चोट खाने के कारण वे देर तक युद्धस्थल में ठहर न सके। यहाँ से शिबिर में जाकर वे पुरुषप्रवर युधिष्ठिर विश्राम कर रहे हैं। तब अर्जुन ने केशव से तथास्तु कहकर उनकी आज्ञा शिरोधार्य की।

कृष्ण का संवाद

तत्पश्चात यदुकुल तिलक श्रीकृष्ण ने शांतभाव से रथिश्रेष्ठ अर्जुन के उस रथ को युधिष्ठिर के शिविर की ओर लौटाया। अर्जुन से पूवोक्त बात कहकर भगवान श्रीकृष्ण सैनिकों से बोले- वीरों! तुम्हारा कल्याण हो! तुम शत्रुओं का सामना करने के लिये सदा प्रयत्नपूर्वक डटे रहना। इसके बाद गोविन्द धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, नकुल, सहदेव, भीमसेन और सात्यकि से इस प्रकार बोले- अर्जुन ने कर्ण को मार डाला यह समाचार जब तक हम लोग राजा युधिष्ठिर से निवेदन करते हैं, तब तक तुम सभी नरेशों को यहाँ शत्रुओं की ओर से सावधान रखना चाहिये।

श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना

उन शूरवीरों ने उनकी आज्ञा स्वीकार करके जब जाने पर अनुमति दे दी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को साथ लेकर राजा युधिष्ठिर का दर्शन किया। उस समय नृपश्रेष्ठ युधिष्ठिर सोने के उत्तम पलंग पर सो रहे थे। उन दोनों ने वहाँ पहुँचकर बड़ी प्रसन्नता के साथ राजा के चरण पकड़ लिये। उन दोनों के हर्षोंलास को देखकर राजा युधिष्ठिर यह समझ गये कि राधापुत्र कर्ण मारा गया; अतः वे शय्या से उठ खडे़ हुए और नेत्रों से आनंद के आँसू बहाने लगे। शत्रुदमन महाबाहु युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण और अर्जुन से बारंबार प्रेमपूर्वक बोलने और उन दोनों को हृदय से लगाने लगे।। उस समय अर्जुनसहित यदुकुलतिलक वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण के मारे जाने का सारा समाचार उन्हें यथावतरूप से कह सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण हाथ जोड़कर किंचित मुस्कराते हुए, जिनका शत्रु मारा गया था, उस राजा युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले- राजन! बड़े सौभाग्य की बात है कि गाण्डीवधारी अर्जुन, पाण्डव भीमसेन, पाण्डुकुमार माद्रीनन्दन नकुल-सहदेव और आप भी सकुशल हैं। आप सब लोग वीरों का विनाश करने वाले इस रोमांचकारी संग्राम से मुक्त हो गये। पाण्डुनन्दन! अब आगे जो कार्य करने हैं, उन्हें शीघ्र पूर्ण कीजिये। राजन! महारथी सूतपुत्र वैकर्तन कर्ण मारा गया, राजेन्द्र! सौभाग्य से आप विजयी हो रहे हैं। भारत! आपकी वृद्धि हो रही है, यह परम सौभाग्य की बात है।[1] जिस नराधम ने जूए में जीती हुई द्रौपदी का उपहास किया था, आज पृथ्वी पर सूतपुत्र कर्ण का रक्त पी रही है। महाबाहो! आपका वह शत्रु रणभूमि में सो रहा है और उसके सारे शरीर में बाण भरे हुए हैं। नरव्याघ्र! अनेक बाणों से क्षत-विक्षत हुए उस कर्ण को आप देखिये। महाबाहो! आप सावधान होकर हम सब लोगों के साथ इस निष्कंटक हुई पृथ्वी का शासन और प्रचुर भागों का उपभोग कीजिये।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-20
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 96 श्लोक 21-41

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