भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 76वें अध्याय में संजय ने भीमसेन और उनके सारथि विशोक के मध्य संवाद का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

भीमसेन द्वारा कौरव सैनिकों का संहार

संजय कहते हैं– राजन! उस समय उस घमासान युद्ध में बहुत से शत्रुओं द्वारा अकेले घिरे हुए भीमसेन महासमर में अपने सा‍रथी से बोले– 'सारथे! अब तुम रथ को धृतराष्ट्रपुत्रों की सेना की ओर ले चलो। सूत! तुम अपने वाहनों द्वारा वेगपूर्वक आगे बढ़ो। जिससे इन धृतराष्ट्रपुत्रों को मैं यमलोक भेज सकूँ।' भीमसेन के इस प्रकार आदेश देने पर सारथी तुरंत ही भयंकर वेग से युक्त हो आपके पुत्रों की सेना की ओर, जिधर भीमसेन जाना चाहते थे, चल दिया। तब अन्‍यान्‍य कौरवों ने हा‍थी, घोडे़, रथ और पैदलों की विशाल सेना साथ ले सब ओर से उन पर आक्रमण किया। वे भीमसेन के अत्‍यन्‍त वेगशाली श्रेष्ठ रथ पर चारों ओर से बाण समूहों द्वारा प्रहार करने लगे। परंतु महामनस्‍वी भीमसेन ने अपने ऊपर आते हुए उन बाणों को सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा काट डाला। वे सोने की पाँख वाले बाण भीमसेन के बाणों से दो-दो तीन-तीन टुकड़ों में कटकर गिर गये।

राजन! नरेन्‍द्र! तत्‍पश्चात श्रेष्ठ राजाओं की मण्‍डली में भीमसेन के द्वारा मारे गये हाथियों, रथों, घोड़ों और पैदल युवकों का भयंकर आर्तनाद प्रकट होने लगा, मानो वज्र के मारे हुए पहाड़ फट पड़े हों। जैसे जिनके पंख निकल आये हैं, वे पक्षी सब ओर से उड़कर किसी वृक्ष पर चढ़ बैठते है, उसी प्रकार भीमसेन के उत्तम बाणों से आहत और विदीर्ण होने वाले प्रधान-प्रधान नरेश समरांगण में सब ओर से भीमसेन पर ही चढ़ आये। आपकी सेना के आक्रमण करने पर अनन्‍त वेगशाली भीमसेन ने अपना महान वेग प्रकट किया। ठीक उसी तरह, जैसे प्रलयकाल में समस्‍त प्राणियों का संहार करने वाला काल हाथ में दण्‍ड लिये सबको नष्ट और दग्‍ध करने की इच्‍छा से असीम वेग प्रकट करता है। अत्‍यन्‍त वेगशाली भीमसेन के महान वेग को आपके सैनिक रणभूमि में रोक न सके। जैसे प्रलयकाल में मुँह बाकर आक्रमण करने वाले प्रजा संहारकारी काल के वेग को कोई नहीं रोक सकता। भारत! तदनन्‍तर समरांगण में महामना भीमसेन के द्वारा दग्‍ध होती हुई कौरव सेना भयभीत हो सम्‍पूर्ण दिशाओं में बिखर गयी। जैसे आँधी बादलों को छिन्‍न-भिन्‍न कर देती है, उसी प्रकार भीमसेन ने आपके सैनिकों को मार भगाया था।[1]

भीमसेन का अपने सारथी विशोक से संवाद

तत्‍पश्चात बलवान और बुद्धिमान भीमसेन हर्ष से उल्‍लसित हो अपने सारथि से पुन: इस प्रकार बोले– 'सूत! ये जो बहुत से रथ और ध्‍वज एक साथ इधर बढ़ आ रहे हैं, उन्‍हें पहचानों तो सही। वे अपने पक्ष के हैं या शत्रु पक्ष के? क्‍योंकि युद्ध करते समय मुझे अपने-पराये का ज्ञान नहीं रहता, कहीं ऐसा न हो कि अपनी ही सेना को बाणों से आच्‍छादित कर डालूँ। विशोक! सम्‍पूर्ण दिशाओं में शत्रुओं को देखकर उठी हुई चिन्‍ता मेरे हृदय को अत्‍यन्‍त संतप्त कर रही है; क्‍योंकि राजा युधिष्ठिर बाणों से आघात से पीड़ित हैं और किरीटधारी अर्जुन अभी तक उनका समाचार लेकर लौटे नहीं। सूत! इन सब कारणों से मुझे बहुत दु:ख हो रहा है। सारथे! पहले तो इस बात का दु-ख हो रहा है कि धर्मराज मुझे छोड़कर स्‍वयं ही शत्रुओं के बीच में चले गये। पता नहीं, वे अब तक जीवित हैं या नहीं? अर्जुन का भी कोई समाचार नहीं मिला; इससे आज मुझे अधिक दु:ख अच्‍छा, अब मैं अत्‍यन्‍त विश्वस्‍तहोकर शत्रुओं की प्रचण्‍ड सेना का विनाश करूँगा। यहाँ एकत्र हुई इस सेना को युद्धस्‍थल में नष्ट करके मैं तुम्‍हारे साथ ही आज प्रसन्‍नता का अनुभव करूँगा।[1]

सूत! तुम मेरे रथ पर रखे हुए बाणों के सारे तरकसों की देखभाल करके ठीक-ठीक समझकर मुझे स्पष्ट रूप से बताओ कि अब उनमें कितने बाण अवशिष्ट रह गये हैं? किस-किस जाति के बाण बचे हैं और उनकी संख्या कितनी है? सारथे! शीघ्र बताओ, कौन बाण कितने हजार और कितने सौ शेष हैं'?

विशोक ने कहा– 'वीर! मैं आज सब कुछ पता लगा कर आपके मनोरथ की सिद्धि करने वाली बात बता रहा हूँ, कैकेय, काम्बोज, सौराष्ट्र, बाह्लिक, म्लेच्छ, सुह्म, परतंगण, मद्र, वंग, मगध, कुलिन्द, आनर्त, आवर्त और पर्वतीय सभी योद्धा हाथों में श्रेष्ठ आयुध लिये आपको चारों ओर से घेरकर युद्धस्थल में शत्रुओं का सामना करने के लिये गरज रहे हैं। वीरवर! अभी अपने पास साठ हजार मार्गण हैं, दस-दस हजार क्षुर और मल्ल हैं, दो हजार नारच शेष हैं तथा पार्थ! तीन हजार प्रदर बाकी रह गये हैं। पाण्डुनन्दन! अभी इतने आयुध शेष हैं कि छ: बैलों से जुता हुआ छकड़ा भी उन्हें नहीं खींच सकता। विद्वन! इन सहस्रों अस्त्रों का आप प्रयोग कीजिये। अभी तो आपके पास बहुत यी गदाएँ, तलवारें और बाहुबल की सम्पत्ति हैं। इसी प्रकार बहुतेरे प्रास, मुद्गर, शक्ति और तोमर बाकी बचे हैं। आप इन आयुधों के समाप्त हो जाने के डर में न रहिये'।

भीमसेन बोले– 'सूत! आज इस युद्धस्थल की ओर दृष्टिपात करो। भीमसेन के छोड़े हुए अत्यन्ती वेगशाली बाणों ने राजाओं का विनाश करते हुए सारे रणक्षेत्र को आच्छादित कर दिया है, जिससे सूर्य भी अदृश्य हो गये हैं और यह भूमि यमलोक के समान भयंकर प्रतीत होती है। सूत! आज बच्चों से लेकर बूढ़ों तक समस्त भूपालों को यह विदित हो जायेगा कि भीमसेन समरसागर में डूब गये अथवा उन्होंने अकेले ही समस्त कौरवों को युद्ध में जीत लिया। आज युद्धस्थल में समस्त कौरव धराशायी हो जायँ अथवा बालकों से लेकर वृद्धों तक सब लोग मुझ भीमसेन को ही रणभूमि में ‍गिरा हुआ बतावें! मैं अकेला ही उन समस्त कौरवों को मार गिराऊँगा अथवा वे ही सब लोग मुझ भीमसेन को पीड़ित करें। जो उत्तम कर्मों का उपदेश देने वाले हैं, वे देवता लोग मेरा केवल एक कार्य सिद्ध कर दें। जैसे यज्ञ में आवाहन करने पर इन्द्र देव तुरंत पदार्पण करते हैं, उसी प्रकार शत्रुघाती अर्जुन यहाँ शीघ्र ही आ पहुँचे।

विशोक! देखो, देखो, मेरा बल। मेरे आघातों से शत्रुओं की सेना विदीर्ण हो उठी हैं। देखो, धृतराष्ट्र के सभी बलवान पुत्र नाना प्रकार के आर्तनाद करते हुए भागने लगे हैं। सारथे! इस कौरव सेना पर तो दृष्टिपात करो। इसमें भी दरार पड़ती जा रही हैं। ये राजा लोग क्यों भाग रहे हैं? इससे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि बुद्धिमान नरश्रेष्ठ अर्जुन आ गये। वे ही अपने बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक इस सेना को आच्छादित कर रहें है। विशोक! युद्धस्थल में भागते हुए रथों की ध्वजाओं, हाथियों, घोड़ों और पैदल समूहों को देखो। सूत! बाणों और शक्तियों से प्रताड़ित होकर बिखरे पड़े हुए इन रथों और रथियों पर भी दृष्टिपात करो। अर्जुन के बाण वज्र के समान वेगशाली हैं। उनमें सोने और मयूरपिच्छ के पंख लगे हैं। उन बाणों द्वारा आक्रान्त हुई वह कौरव सेना अत्यन्त मार पड़ने के कारण बारंबार आर्तनाद कर रही है।[2] ये रथ, घोड़े और हाथी पैदल समूहों को कुचलते हुए भागे जा रहे हैं। प्राय: सभी कौरव अचेत से होकर दावानल के दाह से डरे हुए हाथियों के समान पलायन कर रहे हैं। विशोक! रणभूमि में सब ओर हाहाकार मचा हुआ है। बहुसंख्‍यक गजराज बड़े जोर-जोर से चीत्‍कार कर रहे हैं।

विशोक ने कहा– 'भीमसेन! क्रोध में भरे हुए अर्जुन के द्वारा खींच जाते हुए गाण्डीव धनुष की यह अत्‍यन्‍त भयंकर टंकार क्‍या आज आपको सुनायी नहीं दे रही है? आपके ये दोनों कान बहरे तो नहीं हो गये हैं? पाण्‍डुनन्‍दन! आपकी सारी कामनाएँ सफल हुई। हाथियों की सेना में अर्जुन के रथ की ध्‍वजा का वह वानर दिखायी दे रहा है। काले मेघ से प्रकट होने वाली बिजली के समान चमकती हुई गाण्‍डीव धनुष की प्रत्‍यंचा को देखिये। अर्जुन की ध्‍वजा के अग्रभाग पर आरूढ़ हो वह वानर सब ओर देखता और युद्धस्‍थल में शत्रुओं को भयभीत करता है। मैं स्‍वयं भी देखकर उससे डर रहा हूँ। धनंजय का यह विचित्र मुकुट अत्‍यन्‍त प्रकाशित हो रहा है। इस मुकुट में लगी हुई वह दिव्‍यमणी दिवाकर के समान देदीप्‍यमान होती है। वीर! अर्जुन के पार्श्‍वभाग में श्‍वेत बादल के समान प्रकाशित होने वाला और गंभीर घोष करने वाला देवदत्त नामक भयानक शंख रखा हुआ है, उस पर दृष्टिपात कीजिये। साथ ही हाथों में घोड़ों की बागडोर लिये शत्रुओं की सेना में घुसे जाते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण की बगल में सूर्य के समान प्रकाशमान चक्र विद्यमान हैं, ‍जिसकी नाभि में वज्र और ‍किनारे के भागों में छुरे लगे हुए हैं। भगवान केशव का वह चक्र उनका यश बढ़ाने वाला है।

सम्‍पूर्ण यदुवंशी सदा उसकी पूजा करते हैं। आप उस चक्र को भी देखिये। अर्जुन के छुर नामक बाणों से कटे हुए बड़े-बड़े हाथियों के समान शुण्‍डदण्‍ड देवदारू के समान गिर रहे हैं। फिर उन्‍हीं किरीट के बाणों से छिन्‍न-भिन्‍न हो वज्र के मारे हुए पर्वतों के समान वे हाथी सवारों सहित धराशायी हो रहे हैं। कुन्‍तीनन्‍दन! भगवान श्रीकृष्‍ण के इस बहुमूल्‍य पांचजन्‍य शंख को, जो चन्द्रमा के समान श्‍वेतवर्ण है, देखिये। साथ ही उनके वक्ष:स्‍थल पर अपनी प्रभा से प्रज्‍जवलित होने वाली कौस्‍तुभमणि तथा वैजयन्‍ती माला पर भी दृष्टिपात कीजिये। निश्चय ही रथियों में श्रेष्ठ कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन शत्रुओं की सेना को खदेड़ते हुए इधर ही आ रहे हैं। सफेद बादलों के समान श्‍वेतकान्ति वाले उनके महामूल्‍यवान अश्व श्‍यामसुन्‍दर श्रीकृष्‍ण द्वारा संचालित हो रहे हैं। देखिये, जैसे गरुड़ के पंख से उठी हुई वायु के द्वारा बड़े-बड़े़ जंगल धराशायी हो जाते हैं, उसी प्रकार देवराज इन्‍द्र के तुल्‍य तेजस्‍वी आपके छोटे भाई अर्जुन बाणों द्वारा शत्रुओं के रथों, घोड़ों और पैदल समूहों को विदीर्ण कर रहे हैं और वे सब के सब पृथ्‍वी पर गिरते जा रहे हैं। वह देखिये, किरीटधारी अर्जुन ने समरांगण में सा‍रथि और घोड़ों सहित इन चार सौ रथियों को मार डाला तथा अपने विशाल बाणों द्वारा सात सौ हाथियों, बहुत से पैदलों, घुड़सवारों और रथों का संहार कर डाला। विचित्र ग्रह के समान ये बलवान अर्जुन कौरवों का संहार करते हुए आपके निकट आ रहे हैं। अब आपकी कामना सफल हुई। आपके शत्रु मारे गये। इस समय चिरकाल के लिये आपका बल और आयु बढे़'।

भीमसेन ने कहा– 'विशोक! तुम अर्जुन के आने का समाचार सुना रहे हो। सारथे! इस प्रिय संवाद से मुझे बड़ी प्रसन्‍नता हुई है; अत: मैं तुम्‍हें चौदह बडे़-बड़े गाँव की जागीर देता हूँ। साथ ही सौ दासियाँ तथा बीस रथ तुम्‍हें पारितोषिक के रूप में प्राप्‍त होंगे'।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 76 श्लोक 1-14
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 76 श्लोक 15-25
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 76 श्लोक 26-40

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